पाठकों तथा विज्ञान प्रेमियों आज एक महान वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन का जन्मदिन है, हम आपको बता दें कि चार्ल्स डार्विन को मानव इतिहास के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में से एक माना जाता है, क्योंकि चार्ल्स डार्विन का मत यह था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन द्वारा अपना विकास करती है, तथा विकासवाद कहलाने वाला यही सिद्धांत आगे आकर आधुनिक जीवविज्ञान की नींव बना है ।
चार्ल्स डार्विन का जन्म :- चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को दि माउंट, श्र्यूस्बरी, श्रोपशायर, इंग्लैण्ड में हुआ था ॥ इनका आवास इंग्लैण्ड में था तथा इन्हें ब्रिटिश की नागरिकता प्राप्त थी, ब्रिटेन की राष्ट्रीयता थी, इन्होंने भू - विज्ञान तथा प्राकृतिक विज्ञान आदि में काम किया था, जब इन्होंने दि वॉयज ऑफ़ दि बीगल, जीवजाति का उद्भव, क्रमविकास तथा प्राकृतिक वरण पर कार्य तब ये काफी प्रसिद्ध हुए । इसी के साथ - साथ इन्हें अपने जीवन में आगे जाकर 1839 में एफ.आर.एस., 1853 में रायल मेडल, 1859 में वोलास्टोन मेडल तथा सन1864 में कपले मेडल भी प्राप्त हुआ था ॥
चार्ल्स डार्विन द्वारा विज्ञान में किए गए उनके शोध :-
चार्ल्स डार्विन के द्वारा किए गए इनके शोध आंशिक रूप से 1831 से 1836 के मध्य में एचएमएस बीगल पर हुई उनकी समुद्र यात्रा के संग्रहों पर आधारित थे एवं इनमें से कई सारे संग्रह अभी भी उपस्थित हैं। वहीं अल्फ्रेड रसेल वॉलेस के साथ एक संयुक्त प्रकाशन में, डार्विन ने अपने वैज्ञानिक सिद्धांतो का परिचय दिया तथा यह बताया कि विकास का यह शाखा पैटर्न एक ऐसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप हुआ था, जिसे उन्होंने प्राकृतिक वरण या नेचुरल सेलेक्शन कहा। डार्विन एक महान वैज्ञानिक थे आज के इस वर्तमान समय में जो हम सजीव चीजें देखते हैं, उन सभी की उत्पत्ति के बारे में तथा विविधता के बारे में समझने के लिए यह उन्हीं का दिया हुआ सिद्धांत अब सर्वश्रेष्ठ माध्यम बन चुका है।
वैसे अगर हम इस बारे में विस्तृत बात करे तो संचार ही चार्ल्स डार्विन के शोध का केंद्र-बिंदु था। लोगों में उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक जीवजाति का उद्भव, प्रजाति की उत्पत्ति ' प्रजातियों की उत्पत्ति सामान्य पाठकों के लिए केंद्रित थी।चार्ल्स डार्विन यह चाहते थे कि उनका सिद्धांत यथासंभव व्यापक रूप से प्रसारित होता रहे।
चार्ल्स डार्विन के विकास के सिद्धांत के अनुसार हमें यह समझने में सहायता मिलती है कि किस प्रकार से विभिन्न प्रजातियाँ एक दूसरे के साथ आपस में जुड़ी हुई हैं। उदाहरण के लिए हम यह बताते है कि वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि रूस की बैकाल झील में प्रजातियों की विविधता कैसे विकसित हुई थी।
डार्विन से सम्बन्धित अन्य विशेष पहलू :- चार्ल्स डार्विन का मानना था कि जब वह बीगल पर विश्व भ्रमण करने हेतु गए थे तो वहाँ हुई समुद्री-यात्रा को वे अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना मानते थे जिसके कारण उनके व्यवसाय को सुनिश्चित करने में मदद मिली। इसके साथ - साथ समुद्री-यात्रा से सम्बन्धित उनके प्रकाशनों तथा उनके नमूनो को इस्तेमाल करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के कारण, उन्हें लंदन की वैज्ञानिक सोसाइटी में प्रवेश पाने का अवसर प्राप्त हो पाया।
दरअसलअपने कैरियर के प्रारंभ काल में ही, चार्ल्स डार्विन ने प्रजातियों के जीवाश्म सहित बर्नाकल के अध्ययन में अपने आठ साल व्यतीत किए थे। इसके अलावा उन्होंने 1851 से 1854 के मध्य में दो खंडों के जोड़ों में बर्नाकल के बारे में प्रथम बार सुनिश्चित वर्गीकरण विज्ञान का अध्ययन प्रस्तुत किया था। जिसका उपयोग आज भी किया जाता है।
इसके अतिरिक्त कई वर्षों के दौरान, जिसमें उन्होंने अपने सिद्धान्त को परिष्कृत किया था, चार्ल्स डार्विन ने अपने अधिकतर साक्ष्य विशेषज्ञों के साथ चले उनके लम्बे पत्राचार से प्राप्त किए थे।
चार्ल्स डार्विन का यह भी मानना था कि वे बड़े सरलतम रूप किसी से, कभी भी अपनी खोज की चीजों को सीख सकते हैं और इसी कारण वे विभिन्न विशेषज्ञों, जैसे, कैम्ब्रिज के प्रोफेसर से लेकर सुअर-पालकों तक से अपने विचारों का आदान-प्रदान किया करते तथा अपनी खोज को आगे बढ़ाया करते थे।