प्रिय भक्तों हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी का विशेष महत्व होता है. जहाँ एक ओर बसंत ऋतु, शीत ऋतु के पश्चात और ग्रीष्म ऋतु के बाद आकर वातावरण को संतुलित कर देती है । उसी के साथ - साथ माघ महीने में पड़ने वाली बसंत पंचमी के इस पर्व और त्यौहार का उमंग, उल्लास और उत्साह संपूर्ण देश भर में देखने को मिलता है। बसंत पंचमी को विद्या और कला की देवी सरस्वती का दिन माना जाता है, उसमें भी खासकर सभी विद्यार्थियों तथा छात्र - छात्राओं के लिए बसंत पंचमी का पर्व काफी महत्वपूर्ण होता है, इस लिए हर वर्ष बड़ी धूम - धाम के साथ बसंत पंचमी का पर्व शनिवार के दिन 5 फरवरी को मनाया जाता है।
बसंत ऋतु एक ऐसी ऋतु है, जिसको ऋतुओं का राजा अथवा ऋतु राज भी कहते है, बसंत पंचमी के प्रारंभ काल से ही शीत ऋतु कम होने लग जाती है, तथा ग्रीष्म ऋतु का आगाज प्रारंभ हो जाता है, वहीं माघ माह में शुक्ल पक्ष में आने वाली पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है शास्त्रों की माने तो भारतीय पौराणिक ग्रंथों में बसंत पंचमी का अपने आप में खास महत्व होता है, क्योंकि मान्यता के अनुसार बसंत पंचमी के दिन विद्या और कला की देवी मैया सरस्वती साक्षात अवतरित हुईं थीं ।
इस वर्ष क्या हैं खास :- इस साल बसंत पंचमी का पर्व शनिवार के दिन 5 फरवरी को यानी आज ही मनाया जा रहा है, बसंत पंचमी के त्योहार को हम संपूर्ण देश में काफी धूम-धाम से मनाया जा रहा है, विशेष कर छात्र - छात्राओं के लिए इस पर्व का बहुत ज्यादा महत्व है, इस दिन सभी अभ्यार्थी प्रातकाल ही स्नान करने के पश्चात मैया सरस्वती की अराधना कर विद्या का वरदान मांगते हैं, हालांकि कुछ खास रीति - रिवाजों को ध्यान में रखते हुए आप बसंत पंचमी को और भी शुभ बना सकते है।
कुछ जगहों पर धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी यानी आज ही के दिन कामदेव और रति धरती पर आते हैं, इसी के साथ - साथ ही बसंत ऋतु का आगमन भी होने लगता है तब कामदेव एवं रति के आगमन से पृथ्वी पर प्रेम बढ़ता है एवं कामदेव के प्रभाव से ही धरती पर इस ऋतु में सभी जीवों में प्रेम के भाव का संचार होने लगता है, इसी वजह से कई जगहों पर बसंत पंचमी पर कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा - उपासना करने की भी परंपरा है ।
माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि सुबह 6.43 से ही पुण्य काल प्रारंभ हो जाएगा जो कि मध्यान्ह तक रहेगा। ऐसे में इस दिवस पर यायिक, रवि और सिद्ध योग में मैया सरस्वती तथा तक्षक की पूजा करने का विधान बना है। वर्ष भर की छह ऋतुओं में बसंत के आगमन पर माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी पर्व पर जगत के पालनहार और भगवान श्री विष्णु तथा कामदेव की पूजा भी की जाती है। सरस्वती मैया को उनके भक्त प्रेम से बुद्धिदायिनी, ज्ञानदायिनी, माँ शारदा, विद्या, वाघेश्वरी देवी, वीणा वादिनी, वाग्देवी, माँ भारती आदि नामों से भी पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति होने के कारण संगीत की देवी के जन्मोत्सव को भी बसंत पंचमी के रूप में ही मनाया जाता है।
महाकवि कालीदास की भी है कथा :- बसंत पंचमी के दिन एक पौराणिक कथा कवि कालिदास से भी जु़ड़ी हुई है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि कालिदास को जब उनकी पत्नी ने त्याग दिया तो इस बात से दुखी होकर वे नदी में डूब गए और उन्हें आत्महत्या करने का विचार आने लगा. वह यह सब करने ही जा रहे थे कि उसी क्षण माँ सरस्वती देवी नदी के जल से बाहर आ गई तथा कालिदास जी को उसमें स्नान करने के लिए कहा. इसके बाद से ही कालिदास का जीवन बदल गया और वे महाज्ञानी हो गए तथा कालान्तर में कालीदास से महाकवि कालीदास कहलाए ।
चमत्कारिक प्रभाव :- कुछ कथाओं की माने तो पीला वर्ण और पीला रंग मैया सरस्वती का पसंदीदा रंग है, शायद इसीलिए ही बसंत पंचमी के दिन ही पीले रंग का वस्त्र पहनना भी काफी चमत्कारिक प्रभाव देता है, इसी के साथ - साथ मैया सरस्वती की पूजा के दौरान उन्हें पीले रंग का वस्त्र चढ़ाना भी बेहद लाभ एवं शक्ति देने वाला होता है।