आज वसंत पंचमी का पावन पर्व है। आज हम ज्ञान की देवी, मां सरस्वती की पूजा करते हैं। आप सभी जिस क्षेत्र में हैं उसका आधार ज्ञान-विज्ञान, इनोवेशन-इन्वेन्शन ही है और इसलिए वसंत पंचमी के दिन इस आयोजन का एक विशेष महत्व हो जाता है। आप सभी को गोल्डन जुबली सेलिब्रेशन की बहुत-बहुत बधाई !
साथियों,
50 साल एक बहुत बड़ा समय होता है। और इस 50 साल की यात्रा में जब-जब जिस-जिस ने जो-जो योगदान दिया है वे सभी अभिनंनद के अधिकारी हैं। इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए जिन-जिन लोगों ने प्रयास किया है, मैं उनका भी आज अभिनंदन करता हूं। ये भी अद्भुत संयोग है कि आज जब भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष का पर्व मना रहा है, तो आपकी संस्था 50 साल के इस अहम पड़ाव पर है। जब भारत अपनी आजादी के 100 वर्ष मनाएगा, तो आप 75वें वर्ष में होंगे। जैसे भारत ने अगले 25 वर्षों के लिए नए लक्ष्य बनाए हैं, उन पर काम करना शुरू कर दिया है, वैसे ही अगले 25 वर्ष इक्रीसैट के लिए भी उतने ही अहम हैं।
साथियों,
आपके पास 5 दशकों का अनुभव है। इन 5 दशकों में आपने भारत सहित दुनिया के एक बड़े हिस्से में कृषि क्षेत्र की मदद की है। आपकी रिसर्च, आपकी टेक्नॉलॉजी ने मुश्किल परिस्थितियों में खेती को आसान और सस्टेनेबल बनाया है। अभी मैंने जो टेक्नोलॉजी डिस्प्ले देखा, उसमें इक्रीसैट के प्रयासों की सफलता नजर आती है। पानी और मिट्टी का मैनेजमेंट हो, क्रॉप वैराइटी और प्रोडक्शन प्रैक्टिसिस में सुधार हो, ऑन फार्म डायवर्सिटी में बढ़ोतरी हो, Livestock integration हो, और किसानों को मार्केट से जोड़ना हो, ये होलिस्टिक अप्रोच निश्चित रूप से एग्रीकल्चर को सस्टेनेबल बनाने में मदद करती है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में दालों, विशेष रूप से chick-pea को लेकर इस क्षेत्र में जो विस्तार हुआ है, उसमें आपका योगदान अहम रहा है। किसानों के साथ इक्रीसैट की यही collaborative approach खेती को औऱ सशक्त करेगी, समृद्ध करेगी। आज Climate Change Research Facility on Plant Protection और Rapid Generation Advancement Facility के रूप में नई फेसिलिटीज का उद्घाटन हुआ है। ये रिसर्च फेसिलिटीज, क्लाइमेट चेंज की चुनौती का सामना करने में कृषि जगत की बहुत मदद करेंगे। और आपको पता होगा, बदलते हुए climate में हमारी agriculture practices में क्या परिवर्तन लाने चाहिए, उसी प्रकार से भारत ने एक बहुत बड़ा initiative लिया है कि climate change के कारण जो परिस्थितियाँ पैदा हुई हैं natural calamities आती हैं, उसमें मानव मृत्यु की चर्चा तो सामने आती है। लेकिन infrastructure का जो नुकसान होता है, वो पूरी व्यवस्थाओं को चरमरा देता है। और इसलिए भारत सरकार ने climate resistance वाले infrastructure के लिए, उस पर चिंतन-मनन और योजनाएं बनाने के लिए global level के institute को जन्म दिया है। आज वैसा ही एक काम इस agriculture sector के लिए हो रहा है। आप सब अभिनंदन के अधिकारी हैं।
साथियों,
Climate change वैसे तो दुनिया की हर आबादी को प्रभावित करता है, लेकिन इससे सबसे ज्यादा प्रभावित लोग वो होते हैं जो समाज के आखिरी पायदान पर होते हैं। जिनके पास resources की कमी है, जो विकास की सीढ़ी में ऊपर चढ़ने के लिए मेहनत कर रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या में हमारे छोटे किसान हैं। और भारत में 80-85% किसान छोटे किसान हैं। हमारे छोटे किसान क्लाइमेट चेंंज की बात उनके लिए बहुत बड़ा संकट बन जाती है। इसलिए, भारत ने climate challenge से निपटने के लिए दुनिया से इस पर विशेष ध्यान देने का आग्रह किया है। भारत ने 2070 तक नेट ज़ीरो का टारगेट तो रखा ही है, हमने LIFE-Life Mission-Lifestyle for Environment इस Life Mission की ज़रूरत को भी हाईलाइट किया है। उसी प्रकार से Pro planet people एक ऐसा मूवमेंट है जो क्लाइमेट चैलेंज से निपटने के लिए हर community को, हर Individual को climate responsibility से जोड़ता है। ये सिर्फ बातों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत सरकार के एक्शन्स में भी ये रिफ्लेक्ट होता है। बीते सालों के प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए इस साल के बजट में क्लाइमेट एक्शन को बहुत अधिक प्राथमिकता दी गई है। ये बजट हर स्तर पर, हर सेक्टर में ग्रीन फ्यूचर के भारत के कमिटमेंट्स को प्रोत्साहित करने वाला है।
साथियों,
क्लाइमेट और दूसरे factors के कारण भारत की एग्रीकल्चर के सामने जो चुनौतियां हैं, उनसे निपटने में भारत के प्रयासों से आप सभी एक्सपर्ट्स, साइंटिस्ट्स, टैक्निशियंस भलीभांति परिचित हैं। आप में से ज्यादातर लोग ये भी जानते हैं कि भारत में 15 Agro-Climatic Zones हैं। हमारे यहां, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर, ये 6 ऋतुएं भी होती हैं। यानि हमारे पास एग्रीकल्चर से जुड़ा बहुत विविधता भरा और बहुत प्राचीन अनुभव है। इस अनुभव का लाभ विश्व के अन्य देशों को भी मिले, इसके लिए इक्रीसैट जैसी संस्थाओं को भी अपने प्रयास बढ़ाने होंगे। आज हम देश के करीब 170 डिस्ट्रिक्ट्स में drought-proofing के समाधान दे रहे हैं। क्लाइमेट चैलेंज से अपने किसानों को बचाने के लिए हमारा फोकस बैक टू बेसिक और मार्च टू फ्यूचर, दोनों के फ्यूजन पर है। हमारा फोकस देश के उन 80 प्रतिशत से अधिक छोटे किसानों पर है, जिनको हमारी सबसे अधिक ज़रूरत है। इस बजट में भी आपने नोट किया होगा कि natural farming और डिजिटल एग्रीकल्चर पर अभूतपूर्व बल दिया गया है। एक तरफ हम मिलेट्स-मोटे अनाज का दायरा बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं, कैमिकल फ्री खेती पर बल दे रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ solar pumps से लेकर किसान ड्रोन्स तक खेती में आधुनिक टेक्नॉलॉजी को प्रोत्साहित कर रहे हैं। आज़ादी के अमृतकाल यानि आने वाले 25 वर्ष के लिए एग्रीकल्चर ग्रोथ के लिए हमारे विजन का ये बहुत अहम हिस्सा है।
साथियों,
बदलते हुए भारत का एक महत्वपूर्ण पक्ष है- डिजिटल एग्रीकल्चर। ये हमारा फ्यूचर है और इसमें भारत के टेलेंटेड युवा, बहुत बेहतरीन काम कर सकते हैं। डिजिटल टेक्नॉलॉजी से कैसे हम किसान को empower कर सकते हैं, इसके लिए भारत में प्रयास निरंतर बढ़ रहे हैं। क्रॉप असेसमेंट हो, लैंड रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन हो, ड्रोन के माध्यम से insecticides और nutrients की स्प्रेइंग हो, ऐसी अनेक सर्विसेस में टेक्नॉलॉजी का उपयोग, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का उपयोग बढ़ाया जा रहा है। किसानों को सस्ती और हाईटेक सर्विस देने के लिए, एग्रीकल्चर रिसर्च से जुड़े इकोसिस्टम और प्राइवेट एग्री-टेक प्लेयर्स के साथ मिलकर काम हो रहा है। सिंचाई के अभाव वाले इलाकों में किसानों को बेहतर बीज, ज्यादा पैदावार, पानी के मैनेजमेंट को लेकर ICAR और इक्रीसैट की पार्टनरशिप सफल रही है। इस success को डिजिटल एग्रीकल्चर में भी विस्तार दिया जा सकता है।
साथियों,
आजादी के अमृतकाल में हम higher agriculture growth पर फोकस के साथ ही inclusive growth को भी प्राथमिकता दे रहे हैं। आप सब जानते हैं कि कृषि के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान बहुत अहम है। उन्हें सब प्रकार की मदद देने के लिए स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से भी प्रयास किया जा रहा है। खेती में देश की एक बहुत बड़ी आबादी को गरीबी से बाहर निकालकर बेहतर लाइफ स्टाइल की तरफ ले जाने का पोटेंशियल है। ये अमृतकाल, कठिन भौगोलिक परिस्थतियों में खेती करने वाले किसानों को कठिनाइयों से बाहर निकालने के नए माध्यम भी मुहैया कराएगा। हमने देखा है, सिंचाई के अभाव में देश का एक बहुत बड़ा हिस्सा ग्रीन रेवोल्यूशन का हिस्सा नहीं बन पाया था। अब हम दोहरी रणनीति पर काम कर रहे हैं। एक तरफ हम water conservation के माध्यम से, नदियों को जोड़कर, एक बड़े क्षेत्र को irrigation के दायरे में ला रहे हैं, और अभी जब मैं प्रारंभ में यहां के सारे achievements को देख रहा था, तो उसमें बुंदेलखंड में किस प्रकार से पानी के प्रबंधन को और ‘Per Drop More Crop’ के मिशन को सफल करने के लिए कैसे सफलता पायी है, उसका विस्तार से वर्णन मेरे सामने scientist कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ, हम कम सिंचित क्षेत्रों में Water use Efficiency बढ़ाने के लिए माइक्रो इरिगेशन पर जोर दे रहे हैं। जिन फसलों को पानी की जरूरत कम होती है, और जो पानी की कमी से प्रभावित नहीं होतीं उन्हें भी आधुनिक वैरायटी के विकास से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। खाने के तेल में आत्मनिर्भरता के लिए जो नेशनल मिशन हमने शुरु किया है, वो भी हमारी नई अप्रोच को दिखाता है। आने वाले 5 सालों में हमारा लक्ष्य पाम ऑयल एरिया में साढ़े 6 लाख हेक्टेयर की वृद्धि करने का है। इसके लिए भारत सरकार किसानों को हर स्तर पर मदद दे रही है। तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के किसानों के लिए भी ये मिशन बहुत लाभकारी होगा। मुझे बताया गया है, तेलंगाना के किसानों ने पाम ऑयल की प्लांटेशन से जुड़े बड़े लक्ष्य रखे हैं। उनको सपोर्ट करने के लिए केंद्र सरकार हर संभव सहायता देगी।
साथियों,
पिछले कुछ वर्षों में भारत में पोस्ट-हार्वेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत किया गया है। हाल के वर्षों में 35 मिलियन टन की कोल्ड चेन स्टोरेज कपैसिटी तैयार की गई है। सरकार ने जो एक लाख करोड़ रुपए का एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड बनाया है, उसकी वजह से भी पोस्ट-हार्वेस्ट इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास हुआ है। आज भारत में हम FPOs और एग्रीकल्चर वैल्यू चेन के निर्माण पर भी बहुत फोकस कर रहे हैं। देश के छोटे किसानों को हज़ारों FPOs में संगठित करके हम उन्हें एक जागरूक और बड़ी मार्केट फोर्स बनाना चाहते हैं।
साथियों,
भारत के सेमी एरिड क्षेत्रों में काम करने का इक्रीसैट के पास एक rich experience है। इसलिए सेमी एरिड क्षेत्रों के लिए हमें मिलकर, किसानों को जोड़कर sustainable और diversified production systems का निर्माण करना होगा। अपने अनुभवों को ईस्ट और साउथ अफ्रीका के देशों के साथ शेयर करने के लिए exchange programmes भी शुरु किए जा सकते हैं। हमारा लक्ष्य सिर्फ अनाज का प्रोडक्शन बढ़ाना ही नहीं है। आज भारत के पास सरप्लस फूडग्रेन है, जिसके दम पर हम दुनिया का इतना बड़ा food security program चला रहे हैं। अब हम food security के साथ-साथ nutrition security पर फोकस कर रहे हैं। इसी विजन के साथ बीते 7 सालों में हमने अनेक bio-fortified varieties का विकास किया है। अब अपनी खेती को डायवर्सिफाइ करने के लिए, अपने सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अधिक उत्पादन के लिए, बीमारियों और कीटों से अधिक सुरक्षा देने वाली रिजिलियंट वैरायटीज पर हमें ज्यादा से ज्यादा काम करना है।
साथियों,
इक्रीसैट, ICAR और एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज़ के साथ मिलकर एक और initiative पर काम कर सकता है। ये क्षेत्र है बायोफ्यूल का। आप तो Sweet Sorghum (सॉरघम) पर काम करते रहे हैं। आप ऐसे बीज तैयार कर सकते हैं जिससे सूखा प्रभावित किसान, या कम ज़मीन वाले किसान अधिक बायोफ्यूल देने वाली फसलें उगा सकें। बीजों की प्रभावी डिलिवरी कैसे हो, उनके प्रति विश्वास कैसे पैदा हो, इसको लेकर भी मिलकर हम सब को साथ मिलकर के काम करने की ज़रूरत है।
साथियों,
मेरा विश्वास है कि आप जैसे इनोवेटिव माइंड्स की मदद से, पीपल्स पार्टिसिपेशन से, और सोसायटी के कमिटमेंट से हम एग्रीकल्चर से जुड़ी तमाम चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर पाएंगे। भारत और दुनिया के किसानों का जीवन बेहतर बनाने में आप ज्यादा समर्थ हों, बेहतर से बेहतर technological solutions देते रहें, इसी कामना के साथ एक बार फिर इक्रीसैट को इस महत्वपूर्ण पणाव पर, उनके भव्य भूतकाल का अभिनंदन करते हुए, उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए, देश के किसानों की आन-बान-शान के रूप में आपका ये पुरुषार्थ काम आए, इसीलिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। बहुत-बहुत बधाई!
धन्यवाद!
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