प्रस्तावना–
रहीम ने कहा है–
‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।।
अर्थात् पानी मनुष्य के जीवन का स्रोत है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। सभी प्राकृतिक वस्तुओं में जल महत्वपूर्ण है। राजस्थान का अधिकांश भाग मरुस्थल है, जहाँ जल नाम–मात्र को भी नहीं है। इस कारण यहाँ के निवासियों को कष्टप्रद जीवन–यापन करना पड़ता है। वर्षा के न होने पर तो यहाँ भीषण अकाल पड़ता है और जीवन लगभग दूभर हो जाता है। वर्षा को आकर्षित करने वाली वृक्षावली का अभाव है। जो थोड़ी–बहुत उपलब्ध है उसकी अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है। अतः राजस्थान का जल–संकट दिन–प्रतिदिन गहराता जा रहा है।
जल–संकट के कारण–राजस्थान के पूर्वी भाग में चम्बल, दक्षिणी भाग में माही के अतिरिक्त कोई विशेष जल स्रोत नहीं हैं, जो आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। पश्चिमी भाग तो पूरा रेतीले टीलों से भरा हुआ निर्जल प्रदेश है, जहाँ केवल इन्दिरा गांधी नहर ही एकमात्र आश्रय है। राजस्थान में जल संकट के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
- भूगर्भ के जल का तीव्र गति से दोहन हो रहा है।
- पेयजल के स्रोतों का सिंचाई में प्रयोग होने से संकट गहरा रहा है।
- उद्योगों में जलापूर्ति भी आम लोगों को संकट में डाल रही है।
- पंजाब, हरियाणा आदि पड़ोसी राज्यों का असहयोगात्मक रवैया भी जल–संकट का प्रमुख कारण है।
- राजस्थान की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी है कि वर्षा की कमी रहती है।
निवारण हेतु उपाय–
राजस्थान में जल–संकट के निवारण हेतु युद्ध–स्तर पर प्रयास होने चाहिए अन्यथा यहाँ घोर संकट उपस्थित हो सकता है। कुछ प्रमुख सुझाव इस प्रकार हैं
- भू–गर्भ के जल का असीमित दोहन रोका जाना चाहिए।
- पेयजल के जो स्रोत हैं, उनका सिंचाई हेतु उपयोग न किया जाये।
- वर्षा के जल को रोकने हेतु छोटे बाँधों का निर्माण किया जाये।
- पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश की सरकारों से मित्रतापूर्वक व्यवहार रखकर आवश्यक मात्रा में जल प्राप्त किया जाये।
- गाँवों में तालाब, पोखर, कुआँ आदि को विकसित कर बढ़ावा दिया जाये।
- मरुस्थल में वृक्षारोपण पर विशेष ध्यान दिया जाये।
- खनन–कार्य के कारण भी जल–स्तर गिर रहा है, अतः इस ओर भी ध्यान अपेक्षित है।
- पहाड़ों पर वृक्ष उगाकर तथा स्थान–स्थान पर एनीकट बनाकर वर्षा–जल को रोकने के उपाय करने चाहिए।
- हर खेत पर गड्ढे बनाकर भू–गर्भ जल का पुनर्भरण किया जाना चाहिए ताकि भू–गर्भ जल का पेयजल और सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सके।
उपसंहार–
अपनी प्राकृतिक संरचना के कारण राजस्थान सदैव ही जलाभाव से पीड़ित रहा है। किन्तु मानवीय प्रमाद ने इस संकट को और अधिक भयावह बना दिया है। पिछले वर्षों में राजस्थान में आई अभूतपूर्व बाढ़ ने जल–प्रबन्धन के विशेषज्ञों को असमंजस में डाल दिया है। यदि वह बाढ़ केवल एक अपवाद बनकर रह जाती है तो ठीक है; लेकिन यदि इसकी पुनरावृत्ति होती है तो जल–प्रबन्धन पर नये सिरे से विचार करना होगा।