पाठकों हिन्दू धर्म में तिथियो का बहुत महत्व है इसलिए सभी त्यौहार इन्हीं के अनुसार मनाये जाते है। भारतीय ज्योतिष परम्परा के अनुसार एक मास में कुल 30 तिथियाँ होती है। जिनमें से 15 तिथियाँ शुक्ल पक्ष की तथा 15 तिथियाँ कृष्ण पक्ष की होती हैं।
एक दिन में हुए सूर्योदय से लेकर सूर्योदय तक के काल को अहोरात्र बताया गया है, उसी को एक पूर्ण तिथि माना गया है। ग्रन्थ में सूर्य सिद्धान्त के अनुसार पंचागों की तिथियाँ एक दिन में कभी भी किसी समय आरम्भ हो सकती है तथा इनकी अवधि 19 से 26 घण्टे तक हो सकती है।
वैसे यदि तिथि निकालनी हो तो उसके लिए स्पष्ट चन्द्र में से स्पष्ट सूर्य घटाकर 12 से भाग देने पर तिथि ज्ञात हो जाती है। मुहूर्त चिन्तामणि के अनुसार पॉंच प्रकार की तिथियॉ होती है। नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता तथा पूर्णा।
नन्दा तिथियाँ इनमें प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी आती है। भद्रा तिथियाँ इनमें द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी तिथियाँ आती है। जया तिथियाँ इनमें तृतीया, अष्टमी एवं त्रयोदशी तिथियाँ आती है।रिक्ता तिथियाँ इनमें चतुर्थी, नवमी एवं चतुदर्शी तिथियाँ आती है। पूर्णा तिथियाँ इनमें पंचमी, दशमी, पौर्णमासी तथा अमावस्या तिथियाँ आती हैं।
शास्त्रों में जो वर्णन मिलता है उसके अनुसार प्रतिपदा तिथि से लेकर पंचमी तिथि तक अशुभ समय होता है शुक्ल पक्ष में ये तिथियाँ प्रतिपदा से लेकर पंचमी तिथि तक अशुभ मानी जाती है।
इसलिए कि अमावस्या के दिन चन्द्रमा अस्त होकर शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन शाम के समय थोड़ा सा सूर्यास्त के बाद दिखाई देता है फिर शुक्ल पक्ष की पंचमी तक चन्द्रमा की कलायें क्षीण रहने के कारण से ही शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी एवं पंचमी तिथियाँ अशुभ मानी गई है।
अशुभ न होकर के मध्यम फल देने वाली तिथियाँ :- पुनः शुक्ल पक्ष की षष्ठी से लेकर दशमी तिथि तक ज्यों-ज्यों चन्द्रमा की कलायें बढ़ती जाती हैं. त्यों-त्यों षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, व दशमी तिथियाँ अशुभ न होकर मध्यम फल देने वाली कही गई है।
शुभ फल देने वाली तिथियाँ :- शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से लेकर के द्वादशी, त्रयोदशी, चतुदर्शी एवं पौर्णमासी तिथि तक ये पाँचों तिथियाँ उत्तम फल देने वाली बतायी गयी है।
इसी प्रकार से कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर के पंचमी तिथि तक चन्द्रमा की कलायें उत्तम होने के कारण ये पाँचों तिथियाँ शास्त्रों में शुभ फल देने वाली बतायी गयी हैं।
लेकिन उसके पश्चात कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा षष्ठी तिथि से क्षीण होने लगता है तथा इसलिए षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी एवं दशमी तिथि मध्यम फलदायक होती है। कृष्ण पक्ष में एकादशी से लेकर अमावस्या तक पाँचों तिथियाँ चन्द्रमा की किरणों से पूर्ण रूप से क्षीण हो जाने से अशुभ फलदायक होती है। अर्थात सामान्यतः शुक्ल पक्ष की पंचमी से कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तक 15 तिथियाँ शुभ होती है तथा कृष्ण पक्ष पंचमी से लेकर शुक्ल चतुदर्शी तिथि तक की 15 तिथियाँ मध्यम फल देने वाली बतायी गयी है।
किस तिथि में करे कौन सा कार्य :- यहाँ कुछ कार्य ऐसे भी है जिन्हें कुछ निश्चित तिथियों में करना शुभ होता है।
१. द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी एवं त्रयोदशी तिथि में विवाह करना, यात्रा करना, संगीत सिखना प्रारंभ करना, एवं शिल्प बनाना आदि कार्य करना लाभप्रद रहते है।
२. चतुर्थी, नवमी एवं चतुर्दशी तिथि में बन्धन, शस्त्र विषय, अग्नि विद्युत कर्म आदि से सम्बन्धित कार्य प्रारंभ करने चाहिए।
३. षष्ठी तिथि में यात्रा, दन्त कर्म एवं लकड़ी खरीदने - बेचने का कार्य करना शुभ रहता है।
४. अष्टमी तिथि में सामान्यत राजप्रमोद, लेखन, युद्ध तथा स्त्रियों के लिए आभूषण आदि पहने वाले कार्य करने शुभ होते है ।
५. एकादशी तिथि में व्रत उपवास, अनेक धर्मकृत्य, देवोत्सव, उद्यापन एवं धार्मिक कथा आदि कर्म करना श्रेष्ठप्रद कहलाता है।
६. किसी प्रकार की यात्रा को छोड़कर अन्य सभी धार्मिक कार्य द्वादशी तिथि में करना हितकर रहता है।
७. विवाह, शिल्प, मंगल संग्राम, वास्तुकर्म, यज्ञ क्रिया, देव प्राण-प्रतिष्ठा आदि माँगलिक कर्म पौर्णमासी तिथि में करना शुभप्रद होता है।
८. अमावस्या तिथि में सदा पितृकर्म ही करने चाहिए। अमावस्या के दिन शुभ कर्म करना वर्जित कहा गया है।