भगत सिंह का जीवन परिचय
Bhagat Singh Biography in Hindi
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ,
देखना है ,जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है ।
एक ऐसा इंसान, जिसने देश को सबसे ऊपर रखा। अपनी जिंदगी कुर्बान कर दी। भारत के सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त हीरो हैं। अगर चर्चे होते हैं, तो सिर्फ इन्हीं के। दूसरों के लिए, वीरगति को प्राप्त हो गए। शहीद हो गए। सिर्फ 23 साल की उम्र में । एक ऐसी उम्र, जिसमें लोग अपने career के बारे में सोचते हैं। अपनी जिंदगी बनाने के बारे में सोचते हैं। इन्होंने सिर्फ देश के लिए सोचा। गरीबों के लिए सोचा और हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए। सिर्फ आजादी के लिए- इंकलाब जिंदाबाद । यह और कोई नहीं, भगत सिंह ही हो सकते है।
Bhagat Singh
An Introduction
भगत सिंह एक नजर में | |
पूरा नाम | भगत सिंह संधू |
ख्याति प्राप्त नाम | शहीद भगत सिंह शहीद-ए-आजम, सरदार |
जन्म | 28 सितंबर 1907 |
जन्म स्थान | गांव- बंगा, जिला- लयालपुर, पंजाब प्रांत (अब पाकिस्तान में) |
पिता | सरदार किशन सिंह |
माता | विद्यावती कौर |
चाचा | सरदार अजीत सिंह |
दादा जी | सरदार अर्जुन सिंह |
धार्मिक मान्यता | स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुयायी – आर्य समाजी |
शिक्षा | दयानंद एंगलो वेदिक पब्लिक स्कूल, लाहौर |
साथी क्रांतिकारी | सुखदेव, राजगुरु, बटुकेश्वर दत्त, यशपाल, चंद्रशेखर आजाद आदि। |
नारा | इंकलाब जिंदाबाद |
फांसी का स्थान | लाहौर जेल, पंजाब (अब पाकिस्तान में) |
फांसी की तारीख | 23 मार्च 1931 शाम 7 बजकर 33 मिनट |
भगत सिंह का जन्म कब हुआ
Bhagat Singh Birth
आज से लगभग 115 साल पहले, जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा नहीं हुआ था। पाकिस्तान और भारत एक ही देश था। अंग्रेजों ने इसे अपना गुलाम बनाया हुआ था। उस समय भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब प्रांत के, जिला लायलपुर के, बंगा गांव में हुआ था। जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह के पिता और चाचा एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। जब उनका जन्म हुआ। तभी उनके पिता और चाचा की जेल से रिहाई हुई। उनके दादा अर्जुन सिंह स्वामी दयानंद सरस्वती के बहुत ज्यादा प्रभावित थे। इसीलिए उनका पूरा परिवार आर्य समाजी था। भगत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल के पूरी की।
भगत सिंह के परिवार के लोग बहुत ही वीर और साहसी थे। भगत सिंह बचपन से ही वीर, साहसी और निडर थे। उनकी हिम्मत को देखकर, उनसे बड़ी उम्र के बच्चे भी उनसे घबराते थे। एक बार, जब वह अपने पिता के साथ खेत में गए। तो उत्सुकता वश, उन्होंने अपने पिता से सवाल किया। पिताजी आप लोग खेत में बंदूके क्यों नहीं बोलते। ताकि अंग्रेजों को मारने के काम आये और ढेर सारी बंदूकें होंगी। तो हम डटकर अंग्रेजों का सामना भी कर सकेंगे। सरदार किशन सिंह, अपने बेटे के मुंह से ऐसी बातें सुनकर हैरान हुए। लेकिन उन्हें मन ही मन, इस बात पर खुशी भी हुई। उनका बेटा देशभक्ति की राह पर जा रहा है। भगत सिंह जैसे-जैसे बड़े होते गए। देशभक्ति की भावना उनके मन में घर करती गई।
भगत सिंह
जलियांवाला बाग हत्याकांड
13 अप्रैल 1919, यह वह दिन था। जिस दिन कुछ ऐसा हुआ। जिसने भगत सिंह के दिल और आत्मा को झकझोर कर रख दिया। उनके मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आक्रोश भर दिया। क्योंकि इस दिन भारत के इतिहास का, सबसे क्रूर नरसंहार हुआ था। यह घटना भारत के पंजाब प्रांत में, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के निकट स्थिति जलियांवाला बाग हत्याकांड की थी। जिसमें अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने, रोलेट एक्ट के विरोध में हो रही।
एक सभा पर, बिना किसी चेतावनी के भीड़ में खड़े हजारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवा दी थी। इस घटना में अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 1000 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। जब भगत सिंह ने इस घटना के बारे में सुना। तो वह 20 किलोमीटर पैदल चलकर, घटना वाली जगह पर पहुंच गए। वहां पहुंच कर, उन्होंने जो भी देखा। वह बहुत दर्दनाक था। उस दिन से उन्होंने उन सब शहीदों का बदला लेने की ठान ली। खून से सनी हुई, मिट्टी मुट्ठी में भरकर घर ले आए। इस समय उनकी उम्र सिर्फ 12 साल की थी।
महात्मा गांधी
असहयोग आंदोलन
1 अगस्त 1920 ये वह तारीख है। जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया था। जिसके अनुसार, उन्होंने कहा कि कोई भी हिंदुस्तानी ब्रिटिश सरकार का साथ न दे। हर सरकारी नौकर, नौकरियां छोड़ दे। मजदूर फैक्ट्रियों से निकल आएं। बच्चे सरकारी स्कूलों में जाना बंद कर दे। कोई भी किसी तरीके का टैक्स न दे।
सारे विदेशी कपड़े जला दो। इसके पीछे उनका मकसद था। कि ब्रिटिश सरकार का सारा कामकाज रुक जाए। उन्होंने लोगों को विश्वास दिलाया। अगर सब लोगों ने मिलकर ऐसा किया। तो भारत को एक साल के अंदर-अंदर आजादी मिल जाएगी।
भगत सिंह के परिवार के लोग, महात्मा गांधी के विचारो से बहुत प्रेरित थे। वह साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उनके असहयोग आंदोलन का भी समर्थन करते थे। बहुत छोटी उम्र में ही, भगत सिंह महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए।
उन्होंने बढ़-चढ़कर, उसमें हिस्सा लिया। यहां तक कि उन्होंने गांधीजी की मांगों का साथ देते हुए। सरकार के द्वारा प्रायोजित, पुस्तकों को भी जला दिया था।
भगत सिंह
चौरी-चौरा हत्या कांड
5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरीचौरा नामक स्थान पर। पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा। जिसके फलस्वरूप, जनता ने क्रोध में आकर। थाने में आग लगा दी। जिसमें एक थानेदार और 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधीजी स्तब्ध रह गए। इस बात से नाराज होकर, गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। उन्होंने आंदोलन वापस लेते हुए कहा। कि स्वतंत्रता के लिए, हमारा देश अभी पूरी तरह से तैयार नहीं है।
गांधीजी के असहयोग आंदोलन को रद्द कर देने के कारण। भगत सिंह के मन में गांधीजी के प्रति रोष उत्पन्न हो गया। लेकिन पूरे राष्ट्र की तरह, वह भी महात्मा गांधी का सम्मान करते थे। लेकिन उन्होंने गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन की जगह, हिंसात्मक क्रांति का मार्ग अपनाना उचित समझा। उन्होंने जुलूसों में भाग लेना प्रारंभ किया। कई क्रांतिकारी दलों के सदस्य बने। उनके दल के, प्रमुख क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, राजगुरु इत्यादि थे।
भगत सिंह
काकोरी कांड
9 अगस्त 1925 को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों के द्वारा। ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध भयंकर युद्ध करने के लिए। ब्रिटिश सरकार का एक खजाना लूट लेने की ऐतिहासिक घटना हुई थी। जिसको आज हम काकोरी कांड के नाम से जानते हैं। काकोरी कांड में पकड़े गए, क्रांतिकारियों में से 4 को फांसी की सजा दी गई। जबकि 16 अन्य क्रांतिकारियों को 4 साल से लेकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस बात से, भगत सिंह इतने अधिक क्रोधित हो गए। कि उन्होंने 1928 में अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में विलय कर दिया। फिर उसे एक नया नाम दिया- हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन।
भगत सिंह
साइमन कमीशन का बहिष्कार
30 अक्टूबर 1928, यह वही साल था। जिसमें साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिए, भयानक प्रदर्शन हुए। 30 अक्टूबर 1928 को भगत सिंह ने साइमन कमीशन के विरुद्ध, लाहौर में एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया। जिसके दौरान हुए, लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय जी बुरी तरीके से घायल हो गए। उस समय लाला लाजपत राय जी ने कहा था। मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी, ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।
17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से, लाला लाजपत राय जी का देहांत हो गया। लाला लाजपत राय जी की मृत्यु होने से, पूरा देश गम में डूब गया। लेकिन भगत सिंह और उनके साथियों ने अंग्रेजी सरकार को सबक सिखाने के लिए। स्कॉट को मारने की योजना बनाई। जोकि British Superintendent of Police था।
17 दिसंबर 1928 को करीब 4:00 बजे लाहौर की कोतवाली पर, भगत सिंह, राजगुरु, जय गोपाल और चंद्रशेखर आजाद तैनात हो गए। उन्होंने स्कॉट की जगह, सांडर्स को देखकर। उसे मारने के लिए आगे बढ़े। क्योंकि सांडर्स भी, उसी जालिम हुकूमत का एक नुमाइंदा था। फिर भगत सिंह और राजगुरु ने मिलकर, सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी। फिर वहां से भाग निकले। इस तरह से इन लोगों ने लाला लाजपत राय जी की मृत्यु का बदला ले लिया। यह वही घटना थी। जिसके बाद भगत सिंह ने, अपनी दाढ़ी और बाल भी काटवा लिये थे। ताकि उनको कोई पहचान ना पाए।
केन्द्रीय असेंबली मे बम फेंकने की घटना
8 अप्रैल 1929, ब्रिटिश सरकार को भारत के आम आदमी, मजदूर, छोटे व्यापारी और गरीब लोगों के दुख और तकलीफों से कोई लेना-देना नहीं था। उनका मकसद सिर्फ भारत देश को लूटना था। भारत पर शासन करना था। अपने इसी नापाक इरादे के साथ, ब्रिटिश सरकार मजदूर विरोधी बिल पारित करवाना चाहती थी। लेकिन भगत सिंह, चंद्रशेखर और उनके दल को यह मंजूर नहीं था। देश के आम इंसान, जिनकी हालत गुलामी के कारण पहले से ही बहुत खराब थी। वह और खराब हो जाए।
इसी बिल पर विरोध जताने के लिए। भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के केंद्रीय असेंबली में 8 अप्रैल 1929 को बम फेंके। वहां बम फेंकने का मकसद, किसी की जान लेना नहीं था। बल्कि ब्रिटिश सरकार को, उसकी बेखबरी भरी गहरी नींद से जगाना था। साथ ही बिल के खिलाफ विरोध जताना था। इसीलिए असेंबली में फेंके गए बम, बड़ी सावधानी से खाली जगह का चुनाव करके फेंके गए थे।
उन बमों में कोई जानलेवा विस्फोटक इस्तेमाल नहीं किया गया था। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए। फिर अपनी गिरफ्तारी दे दी। क्योंकि भगत सिंह ने दृढ़ निश्चय कर लिया था। उनका जीवन इतना जरूरी नहीं है। जितना कि अंग्रेजों के भारतीयों पर किए जा रहे, अत्याचारो को विश्व के सामने लाना।
भगत सिंह
जेल में हो रहे, अत्याचार का विरोध
गिरफ्तार होने के बाद, भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को जिस जेल में रखा गया। वहां भगत सिंह ने देखा। वहां रखे गए, अंग्रेज और भारतीय कैदियों में बहुत भेदभाव किया जा रहा है। भारतीय कैदियों के लिए, वहां सब कुछ बहुत दुखदाई था। जेल प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां, वर्षों से नहीं बदली गई थी। रसोई क्षेत्र और भोजन, चूहे और कॉकरोचों से भरा रहता था। पढ़ने-लिखने के लिए कागज पेन व अखबार नहीं दिया जाता था।
जबकि उसी जेल में अंग्रेज कैदियों को सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती थी। यह देख कर भगत सिंह ने कहा। कानून सबके लिए एक है। उन्होंने यह निर्णय ले लिया। जब तक उनके साथ, इंसानों जैसा व्यवहार नहीं किया जाता। खाने लायक भोजन, साफ-सुथरे कपड़े, पढ़ने के लिए किताबें और अखबार, लिखने के लिए कागज और पेन नहीं दिया जाता। वह खाना नहीं खाएंगे।
भगत सिंह
जेल मे भूख हड़ताल की शुरुआत
जून 1929, यहां से उनकी भूख हड़ताल का सफर शुरू होता है। बटुकेश्वर दत्त ने भी उनका साथ दिया। उनकी भूख हड़ताल खुलवाने के लिए, अंग्रेज अफसरों ने ऐसे जुर्म ढाए। जिसकी कल्पना करके भी रूह कांप जाती। उन्हें घंटों तक बर्फ़ की सिल्लियों पर लेटाकर, कोड़ो से पीटा जाता। जबरदस्ती उनके मुंह में दूध डालने की कोशिश की जाती। लेकिन वह अपने हौसलों के इतने पक्के थे। वे अपने शरीर में, कभी भी दुध की एक बूंद भी नहीं जाने देते। दूसरी तरफ उनके बाकी साथी क्रांतिकारियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।
कुछ दिनों बाद, भगत सिंह को लाहौर जेल में शिफ्ट कर दिया गया। जहाँ उनके बाकी साथियों को भी रखा गया था। भगत सिंह की भूख हड़ताल को देखकर, उन सब ने भी भूख हड़ताल करना शुरू कर दिया। जिसमें सुखदेव, राजगुरु, जितेंद्र नाथ दास व अन्य सभी क्रांतिकारी शामिल थे। उन सबके साथ भी, अंग्रेजी सरकार ने वही सब सलूक करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उनको कई-कई दिनों तक पानी भी नहीं दिया जाता। उनके पानी के घड़ो में, पानी की जगह दूध रख दिया जाता। जिससे कि वह तड़प-तड़पकर, अपनी भूख हड़ताल तोड़ दें। लेकिन न जाने, वह किस मिट्टी के बने थे। वह कमजोर नहीं पड़े।
13 सितंबर 1929 को जेल में भूख हड़ताल के कारण, एक महान स्वतंत्रता सेनानी व क्रांतिकारी जितेंद्र नाथ दास की मृत्यु हो गई। उन्होंने 63 दिनों तक कुछ भी नहीं खाया था। लेकिन उनकी भूख हड़ताल अटूट रही। उनकी मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया। आखिरकार उनकी ज़िद्द के आगे, अंग्रेजी सरकार को घुटने टेकने पड़े। भगत सिंह की सारी शर्तों को मानना पड़ा।
5 अक्टूबर 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने पूरे 116 दिन के बाद, अपनी भूख हड़ताल तोड़ी थी। यह बात कितनी हैरान करने वाली है। 116 दिन वो भी कितनी कठिन परिस्थितियों में भूखा रहना। भगत सिंह का वजन 60 किलो था। लेकिन इस भूख हड़ताल के बाद, उनका वजन 6.4 किलो घट गया।
26 अगस्त 1930 को अदालत ने भगत सिंह को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6 F तथा आईपीसी की धारा 120 के अंतर्गत अपराधी सिद्ध किया। 7 अक्टूबर 1930 को अदालत के द्वारा 68 पृष्ठों का एक निर्णय दिया गया। जिसमें भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी की सजा। अन्य सभी क्रांतिकारियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
भगत सिंह
फाँसी का दिन
23 मार्च 1931 यह फांसी का दिन था। फांसी देने का दिन 24 मार्च 1931 सुबह का रखा गया था। लेकिन भारतीय जनता में, भगत सिंह की फांसी को लेकर काफी आक्रोश भरा हुआ था। इसीलिए अंग्रेजों ने उनको 1 दिन पहले ही 23 मार्च 1931 को फांसी देने का फैसला किया। जेल के अधिकारियों ने जब भगत सिंह को, यह सूचना दी। उनकी फांसी का वक्त आ गया है। तब वह एक किताब पढ़ रहे थे। तभी उन्होंने कहा था- ठहरिए, पहले एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो लेने दे। फिर 1 मिनट बाद, किताब छत पर उछालकर बोले। ठीक है, अब चलो। फांसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों मस्ती से गाना गा रहे थे।
मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला।
मेरा रंग दे बसंती चोला, माए रंग दे बसंती चोला।।
फांसी के तख्तों पर खड़े होकर। जोरदार इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए थे। वह लोग बहुत खुश थे। क्योंकि वह देश के लिए, अपनी कुर्बानी देने जा रहे थे। फिर 23 मार्च 1931 की शाम करीब 7 बजकर 33 मिनट पर, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। आप में से ज्यादातर लोगों को, भगत सिंह के बारे में यही तक पता होगा। क्यों उनको फांसी दे दी गई थी। लेकिन कहानी यहां खत्म नहीं होती।
फाँसी के बाद की कहानी
फांसी के बाद, कहीं कोई आंदोलन न भड़क जाए। इसके डर से अंग्रेजों ने पहले, जेल की पीछे की दीवार तोड़ी। इनके मृत शरीर के कुल्हाड़ी से, टुकड़े किए गए। फिर इन्हें बोरियों में भरकर, पीछे के रास्ते से फिरोजपुर की ओर ले जाया गया। जहां मिट्टी का तेल डालकर, उनके पार्थिव शरीर को जलाया जाने लगा। लेकिन गांव के लोगों ने, जब आग जलती देखी। तो करीब आने लगे। इन गांव वालों से डरकर, अंग्रेजों ने इनकी लाश के आधे-अधूरे जले टुकड़ों को, जल्दी-जल्दी सतलुज नदी में फेंका। फिर वहाँ से भाग गए। जब गांव वाले पास आए। तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ों को, एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया। इसी के साथ भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव हमेशा के लिए अमर हो गए।
भगत सिंह का घोषणा-पत्र (Manifesto)
अमर शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, मन्मथ नाथ गुप्त, सचिंद्र नाथ लहरी, राम प्रसाद बिस्मिल इन सब लोगों ने मिलकर, एक संगठन बनाया। इस संगठन का नाम हिंदुस्तानी रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन था।
इस संगठन का गठन वाराणसी में सन 1928 में हुआ था। इस संगठन के स्थापना के समय, इन सभी क्रांतिकारियों ने मिलकर, एक घोषणा पत्र (Manifesto) जारी किया था। उस घोषणा पत्र में 29 बिंदु थे। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
1. अंग्रेज हमारे भारत को छोड़कर जाएं। यह हमारे जीवन का पहला लक्ष्य है। लेकिन यह आखिरी नहीं है।
2. हमारा लक्ष्य है कि अंग्रेजियत भारत छोड़कर जाए। अंग्रेजियत से उनका का तात्पर्य था। अंग्रेजों द्वारा बनाई गई व्यवस्था। उनके द्वारा बनाए गए। कानून, नीतियां, सारे के सारे तंत्र- जिनमे उनकी भाषा, वेशभूषा, वस्तुएं, पाठ्यक्रम, शिक्षा-व्यवस्था, कानून-व्यवस्था, न्याय-व्यवस्था, प्रशासनिक-व्यवस्था, कर-व्यवस्था आदि। यह सारा का सारा तंत्र हिंदुस्तान से चला जाए।
3. भारत देश को अंग्रेजों ने लूट-लूटकर गरीब बना दिया। वरना भारत कभी गरीब देश नहीं था। अंग्रेजों के लूट के चलते, जो गरीबी आई है। वह भारत से बहुत जल्दी दूर हो। भारत फिर से, एक समृद्धशाली व संपत्तिवान देश बने।
4. भारत के किसान व भारत के मजदूरों को। इस देश में इतना सम्मान मिले। जितना पिछले ढाई सौ साल में, उन्हें कभी नहीं मिला। जिसके वह हमेशा से हकदार रहे हैं।
5. भारत का साधारण से साधारण नागरिक, इस देश मे इतने सम्मान से जिये। जैसे कि कोई करोड़पति अरबपति जीता है। पैसे को लेकर सम्मान न हो। व्यक्ति का सम्मान हो। उसके कर्म का सम्मान हो। उसके कर्तव्य का सम्मान हो।
6. हमारे हाथ में पांच उंगलियां हैं। कोई भी एक-दूसरे के बराबर नहीं है। इन उंगलियों में बहुत मामूली-सा अंतर है। तो हमारे देश में अमीर और गरीब के बीच इतना ही मामूली अंतर होना चाहिए।
7. भारत आजाद होगा। इसको दुनिया की कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती। मैं आज यह कह रहा हूं कि भारत लगभग 15 साल बाद, आजाद होगा। इसे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन आजादी के बाद का, भारत कैसा होगा। इस पर हम सभी को बहुत आशंका है। अगर भारत स्वदेशी व स्वावलंबन के रास्ते पर चलेगा।
तो हमारी आत्मा को सुकून मिलेगा। लेकिन आजादी के बाद, अगर फिर भारत विदेशी और गुलामी की राह पर चल पड़ा। तो हमारी शहादत बेकार जाएगी। तो इसलिए भारतवासियों से हमें निवेदन करना है। कि आजादी कोई बड़ी बात नहीं है। वह तो आ ही जाएगी। लेकिन आजाद भारत आप कैसा बनाएंगे। वह अधिक महत्व की बात है।
भगत सिंह के अनजाने तथ्य
● भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे। जब उनके माता-पिता, उनकी शादी की योजना कर रहे थे। तब वह घर छोड़कर कानपुर भाग आए। उन्होंने तब कहा था- अब तो आजादी ही मेरी दुल्हन बनेगी।
● फांसी के वक्त भगत सिंह और सुखदेव की उम्र मात्र 23 साल थी जबकि राजगुरु की उम्र सिर्फ 22 साल की थी।
● भगत सिंह को हिंदी उर्दू पंजाबी तथा अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भी बहुत अच्छे से आती थी जो उन्होंने बटुकेश्वर दत्त से सीखी थी
● भगत सिंह एक स्पष्ट वक्ता और एक अच्छे लेखक भी थे।
● भगत सिंह का दिया हुआ नारा- इंकलाब जिंदाबाद।
● कॉलेज के दिनों में भगत सिंह, एक अच्छे अभिनेता भी थे। उन्होंने बहुत सारे नाटकों का मंचन भी किया था।
● भगत सिंह को कुश्ती का भी शौक था।
● हिंदू-मुस्लिम दंगों से दुखी होकर, भगत सिंह ने घोषणा की थी कि वह नास्तिक हैं।
● भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले का खाना बेहद पसंद था। उन्हें चार्ली चैपलिन की फिल्में बहुत पसंद थी।
● महात्मा गांधी अगर चाहते, तो भगत सिंह की फांसी रुकवा सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
● भगत सिंह की इच्छा थी कि उन्हें अपराधियों की तरह फांसी पर चढ़ाकर नहीं बल्कि युद्ध बंदी की तरह गोली मारकर मौत दी जाए। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने, उनकी इस इच्छा को भी नजरअंदाज कर दिया।
भगत सिंह के नारे
Bhagat Singh Quotes in Hindi
● “जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।”
● “सूर्य विश्व में हर किसी देश पर उज्ज्वल हो कर गुजरता है परन्तु उस समय ऐसा कोई देश नहीं होगा जो भारत देश के सामान इतना स्वतंत्र, इतना खुशहाल, इतना प्यारा हो।”
● “राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है।”
● “यदि बहरों को सुनना है तो आवाज़ को बहुत जोरदार होना होगा। जब हमने बम गिराया तो हमारा धेय्य किसी को मारना नहीं थ। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था । अंग्रेजों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आज़ाद करना चहिये।”
● “किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।”
● “जो व्यक्ति उन्नति के लिए राह में खड़ा होता है उसे परम्परागत चलन की आलोचना एवम विरोध करना होगा साथ ही उसे चुनौती देनी होगी।”
● “मैं एक इन्सान हूँ और जो भी चीजे इंसानियत पर प्रभाव डालती है मुझे उनसे फर्क पड़ता है।”