डॉ. चंद्रकांता कुमावत
पीएचडी स्कॉलर ज्योतिष एवं वास्तु संस्थान
राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर
डॉ. अलकनंदा शर्मा
विभागाध्यक्ष ज्योतिष एवं वास्तु संस्थान
राजस्थान विद्यापीठ उदयपुर
श्री गणेशाय नमः। वेद ज्योतिष के प्रमुख स्रोत हैं और ऋग्वेद के मध्य में पांच तत्व हैं। ज्योतिषशास्त्र को वेद का चक्षु (नेत्र) कहागया है। इसी कारण वेदांगों में इसकी मुख्यता कही गयी है। कर्ण, नासिका आदि दूसरे अंगों से सम्पन्न होने पर भी नेत्ररूपी अंगसे हीन होने पर मनुष्य कुछ भी करने में सक्षम नहीं है। (सिद्धांत शिरोमणि, मध्यमागा) इस प्रकार किसी भी क्षेत्र में अध्ययन करनेतथा निष्कर्षों तक में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता हैं। वैदिक काल में बालक माता पिता का घर छोड़कर गुरुकुल में ही शिक्षाअध्ययन करने जाते थे। प्रारम्भिक अवस्था में गुरू मौखिक प्रवचन द्वारा ही शिक्षा प्रदान करते थे। बालक उन बातों का मननएवम् चिन्तन करते थे। सनातन काल में वैदिक शिक्षाप्रणाली द्वारा विद्याध्ययन करवाया जाता था, जो कि समस्त शिक्षा प्रणालीवैदिक शिक्षा प्रणाली द्वारा आधारित थी। वह वेदों पर आधारित थी। शिक्षा के माध्यम से ही हम सभ्य संस्कारी व सामाजिकजीवनयापन करते है। इतिहासकारों के अनुसार 2500 ईसा पूर्व से 500 ई. पू. तक भारतीय शिक्षा प्रणाली पूर्णत: वेदों परआधारित थी।
शिक्षा की संरचना एवं संगठन
प्रारम्भिक शिक्षा - 5 वर्ष से विद्यारम्भ संस्कार (कुल पुरोहितों द्वारा) किया जाता था। विद्यारम्भ संस्कार में सर्वप्रथम बालक कोनहलाया जाता था। उसे नये वस्त्र पहनाये जाते थे। कुल पुरोहित और बच्चे के बीच में चावल बिखेर दिये जाते थे। फिर बच्चोंको चावलों से अक्षर बनवाकर इस संस्कार की शुरुआत की जाती थी ।
उच्च शिक्षा
उच्च शिक्षता उपयनयन संस्कार से प्रारम्भ की जाती थी। शिक्ष उच्च गुरु कुल में सम्पन्न होती थी। गुरुकुल घर से दूर जंगलों केबीच शान्त वातावरण में होते थे। उपनयन संस्कार को यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है। यहां पर उप का अर्थ है पास और नयन का अर्थ है ले जान। उस समय में वर्णव्यवस्था विद्यमान थी । ब्राह्मण का 8 वर्ष, क्षत्रिय का 10 वर्ष और वैश्य का 12वर्ष में उपनयन संस्कार किया जाता था। उपनयन के बाद ही उच्च शिक्षा का अधिकार मिलता था। शुद्र को तकनीक कौशल की शिक्षा दी जाती थी इसलिए उसका उपनयन आवश्यक नहीं था। शुद्र को यदि उच्च शिक्षा की आवश्यकता होती तो उसका उपनयन किया जाता था। यह विषय अधिकार पर आधारित नहीं था।
समावर्तन संस्कार (वापस लौटना)
विद्यारम्भ संस्कार और उपनयन संस्कार के सम्पन्न होने के पश्चात् विद्यार्थी घर वापस लौटता था। उस समय विद्यार्थी समावर्तनसंस्कार किया जाता था। इस संस्कार में -जाती थी। गुरु को गुरु दक्षिणा दी जाती है। इस संस्कार के उपरान्त ही विद्यार्थी गृहस्थजीवन प्रारम्भ कर सकता था।
● वैदिक शिक्षा प्रणाली में प्रशासनिक व वित्तीय व्यवस्था बिल्कुल भिन्न थी ।
1. निःशुल्क शिक्षा शिक्षा पर किसी भी राज्य का नियन्त्रण नहीं होता था। मै गुरुकुल में परिवर्तन ला सकते गुरु पाठ्यक्रम
2. आय के स्रोत -
- तात्कालिक समय में कोई कोई राजा शिक्षा के लिये वित्तीय सहायता देते थे वह स्थायी स्रोत नहीं होता घ्या | फिर भी 'प्रजा, जानवर, कपड़े, अनाज, बर्तन, धन आदि का दान करती थी ।
- विद्यार्थी आसपास से भिक्षा भी लाते थे । शिक्षा सम्पन्न होने के उपरान्त गुरु को गुरु 'दक्षिणा के रूप में अन्न, वस्त्र प्रदान करतेथे।.
- वर्तमान समय में हम देखते हैं कि शिक्षा का स्वरूप एकदम बदल गय है। माता-पिता अपने बालकों के प्रति, विद्या के प्रतिबहुत ही ज्यादा जागरू क हो गये है ।
- जब बालक अपने समूह से आगे निकल जाता तो अभिभावक सोचते हैं कि क्यों न उन्हें क्रमोन्नत किया जाए |
- ऐसे समय में अभिभावक उसे आगे वाली करना में बिठा देते हैं, धीरे धीरे बालक पर मानसिक दबाव पड़ता वह अपने से बड़ेसमूह के साथ मानसि सामंजस्य नहीं बैठा पाता है
भारत में शिक्षा का अधिकार
- संविधान के अनुच्छेद 21-ए के अन्तर्गत मूल अधिकार में उल्लेख किया हुआ है।
- 2 दिसम्बर 2002 को संविधान में 86वाँ संशोधन करके शिक्षा को ‘मौलिक अधिकार’ बनाया गया है। इसमें 6-14 तक केआयु के प्रत्येक बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में बताया गया है और अनिवार्य कर दिया गया है। सरकार काप्रयास है कि इस आयु वर्ग का कोई भी बालक शिक्षा से वंचित नहीं रहे।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
- ज्योतिषीय दृष्टिकोण से देखते हैं तो शैक्षणिक क्षेत्र में ज्योतिष का महत्वपूर्ण स्थान है। बालक के शैक्षणिक स्तर पर बालकका जन्म नक्षत्र, लग्न, ग्रहों की स्थिति सभी का बहुत प्रभाव पड़ता है।
1 महत्वाकांक्षा
जैसे- जन्म कुण्डली में नवम भाव है व धर्म का त्रिकोण है, जिसके स्वामी-देवगुरुबृहस्पति हैं जो शिक्षा की महत्वाकांक्षा व उच्च शिक्षा व उसके स्तर को दर्शाते हैं।इसका संबंध पंचम से हो जाए तो बालक अच्छी शिक्षा ग्रहण करता है।[1]
2 शिक्षा का स्तर
जन्म कुण्डली का 5 हाउस बुद्धि, ज्ञान, कल्पना, अतीन्द्रिय ज्ञान, रचनात्मक कार्य, स्मरण शक्ति व पूर्व जन्म के संचित कर्म को दर्शाता है व शिक्षा का स्तर दर्शाता है।[2]
3 कुण्डली का द्वितीय भाव-
वाणी, धन संचय व मानसिक स्थिति केसाथ-साथ यह बताता है कि किस प्रकार कीशिक्षा होगी। यदि बालक गणित लेना चाहताहै तो बुध का संबंध लग्न, लग्नेश या लग्न, नक्षत्र से होता है तो गणित में सफल होता है।
2 शनि/ मंगलसेसंबंधहो तोमशीनरी कार्य में दक्ष होता है।[3]
यदि मंगल + राहू दशमस्थ बुध व सूर्य या मंगल की दृष्टि शनि + राहू का संबंध, चन्द्र + बुध का संबंध
दशमस्थ राहू + षष्ठस्थ सूर्यस का संबंध तकनीकी शिक्षा में आगे बढ़ाता है।[4]
अच्छी शैक्षणिक योग्यता के महत्वपूर्ण योग
- 1 द्वितीयेश या बृहस्पति केन्द्र या त्रिकोण में स्थिति हो।
- 2 पंचम भाव में बुध की स्थिति या दृष्टि या बृहस्पति और शुक्र की युति हो।
- 3 पंचमेश की पंचम भाव में बृहस्पति या शुक्र के साथ युति हो।
- 4 बृहस्पति, शुक्र और बुध में से केन्द्र या त्रिकोण में है।[5]
शैक्षिक योग्यता का अभाव या न्यूनता
- 1 पंचम भाव में शनि की स्थिति और लग्नेश की दृष्टि हो।
- 2 पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या अशुभ ग्रहों की स्थिति हो।
- 3 पंचमेश नीच राशि में हो व अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो।[6]
तो बालक की ग्रह स्थिति के अनुसार ही विषय चयन करना चाहिए।
विभिन्न ग्रहों के शिक्षा संबंधित प्रतिनिधित्व का विवरण निम्नलिखित है, जिसके आधारानुसार ग्रहों की उपरोक्त भावों मेंस्थिति को देखकर जातक के लिये उपयुक्त विषय का चयन कर सकते हैं-
· 1 सूर्य- चिकित्सा, शरीर विशाल, प्राणीशास्त्र, नेत्र चिकित्सा, राजभाषा प्रशासन, राजनीति, जीव विज्ञान।
· 2 चंद्र - नर्सिंग, नाविक शिक्षा, वनस्पति विज्ञान, जन्तु विज्ञान, होटल प्रबंधन, काव्य, पत्रकारिता, पर्यटन, डेयरी विज्ञान, जलदाय।
· 3 मंगल - भूमिति, कानून, पुलिस, सर्वें, अभियांत्रिकी, वायुयान शिक्षा, शल्य चिकित्सा विज्ञान, ड्राइविंग, टेलरिंग,तकनीकी शिक्षा, दंत चिकित्सा, सैनिक शिक्षा, खेलकूल संबंधी प्रशिक्षण।
· 4 बुध - गणित, ज्योतिष, व्याकरण, शासन की विभागीय परीक्षाएं, पदार्थ विज्ञान, हस्तरेखा ज्ञान (भाषा विज्ञान)शब्द शास्त्र, पुस्तकालय विज्ञान, लेखा, वाणिज्य, तत्व ज्ञान, शिक्षक प्रशिक्षण।
· 5 गुरु - बीजगणित, द्वितीय भाषा, आरोग्य शास्त्र, विविध, अर्थशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, धार्मिक या आध्यात्मिक शिक्षा।
· 6 शुक्र- ललितकला (संगीत नृत्य, अभिनय, चित्रकला, टी.वी., फिल्म, वेशभूषा, फैशन, डिजायनिंग, काव्य साहित्य एवं विविध कलाएं।
· 7 शनि - भूगर्भशास्त्र, सर्वेक्षण, अभियांत्रिकी, औद्योगिकी यांत्रिकी, भवननिर्माण, मुद्रणकला (प्रिंटिंग)।
· 8 राहू - तर्कशास्त्र, मेस्मेरिज्म, हिप्नोटिज्म, करतब के खेल, भूत-प्रेत संबंधी ज्ञान, विष चिकित्सा, एंटी बायोटिक्स, इलेक्ट्रोनिक्स, केतु- गुप्त विद्याएं, मंत्र-तंत्र संबंधी ज्ञान।
वैज्ञानिक और औद्योगिक प्रगति के कारण व्यवसायों एवं शैक्षणिक विषयों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि होती जा रही है।
अतः ज्योतिष सिद्धान्तों के आधार पर ग्रहों के पारस्परिक संबंधों को ध्यान में रखकर विचार करना चाहिए।
जीव विज्ञान
- सूर्य का जल राशिस्थ होना।
-दशम भाव में संबंध सूर्य का
-सूर्य + मंगल (चिकित्सा क्षेत्र की पढ़ाई)
-लग्न/ लग्नेश, दशम् दशमेश का संबंध हो तो जातक जज बनता है।
कॉमर्स - लग्न/ लग्नेश का संबंध बुध से साथ गुरु से भी हो तो जातक वाणिज्य की पढ़ाईसफलतापूर्वक करता है।
References:
ज्योतिर्विज्ञान से संबंधित पुस्तकें (नाम पुस्तक, नाम लेखक, प्रकाशक)
1. खगोल शास्त्र, दीपक कपूर,
2. ज्योतिषरत्नाकर - देवकी खत्री
3. प्राचीन भारत में ज्योतिष एवमं खगोल विज्ञान का विकास - डा. अलकनन्दा शर्मा
प्रकाशक – आर्यवर्त संस्कृति संस्थान दिल्ली
4. आजीविका विचार, ज्योतिष के झरोखे से भाग -1, भाग -2 –कृष्णकुमार, प्रकाशक - ए. एल. जैन एल्का पब्लिकेशन , नई दिल्ली
5. फल दीपिका - ओझा गोपेश कुमार, प्रकाशक- मोतीलाल बनारस
6. ज्योतिष रत्नाकर - देवकी नन्दन सिंह, प्रकाशक - मोतीलाल बनारसी दास
7. लघु पाराशरी सिद्धान्त, मेजर एस. जी. रोत
8. कल्याण - ज्योतिष अंक, षठवर्ग फलम् - कृष्ण कुमार
9. अष्टकवर्ग महानिबंध, आचार्य मुकुन्द दैवज्ञ पर्वतीय कृत, व्याख्याकार डा. सुरेन्द्रचंद्र मिश्र ज्योतिषाचार्य
10. ताजिक नीलकण्ठी आचार्य नीलकण्ठ विरचित, व्याख्याकार डा. सुरेन्द्रचंद्र मिश्र ज्योतिषाचार्य