नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में। पीयूष स्रोत–सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में। कविवर जयशंकरप्रसाद की ये पंक्तियाँ स्वस्थ समाज में नारी की भूमिका को अमृत के स्रोत के सदृश सिद्ध करती हैं। भारत के बहुविध समाज में नारी का विशिष्ट स्थान है। कहा जाता है कि जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता रमण करते हैं–यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
वह पति के लिए समर्पण और सेवा, सन्तान के लिए चरित्र और ममता, समाज के लिए शील और विश्व के लिए करुणा सँजोनेवाली महाकृति है। एक गुणवती नारी काँटेदार झाड़ी को भी सुवासित कर देती है और निर्धन–से–निर्धन परिवार को भी स्वर्ग बना देती है। नारी के अभाव में समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। प्राचीनकाल से ही भारत की नारियों ने स्वस्थ समाज की स्थापना में अपना अनुपम योगदान दिया है।
स्वस्थ समाज के निर्माण में नारी की भूमिका उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी शरीर में रीढ़ की हड्डी की होती है। महादेवी वर्मा ने कहा है–“नारी केवल एक नारी ही नहीं, अपितु वह काव्य और प्रेम की प्रतिमूर्ति है। पुरुष विजय का भूखा होता है और नारी समर्पण की। वास्तव में भारतीय नारी पृथ्वी की कल्पलता के समान है।” इसीलिए नारी–निन्दा का निषेध करते हुए किसी ने उचित ही कहा है-
नारी–निन्दा मत करो, नारी नर की खान।
नारी से नर होत है, ध्रुव–प्रह्लाद समान।।
स्वस्थ समाज में नारी की भूमिका–समाज के निर्माण में नारी की भूमिका उच्चकोटि की है, जिसका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-
(क) नारी समाज की जननी है–सृष्टि के सृजन में नारी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। देव से लेकर मानव तक की जन्मदात्री नारी ही है। नारी के बिना समाज का कोई अस्तित्व नहीं है।
(ख)चरित्र–निर्मात्री–नारी मनुष्य को केवल जन्म ही नहीं देती, उसका पालन–पोषण, संस्कार–दान और चरित्र–निर्माण का दायित्व भी पूरी निष्ठा से निभाती है। माता के रूप में बच्चों की प्रथम गुरु वही होती है। उसी के दिए गए संस्कारों के बल पर सुदृढ़ चरित्र का निर्माण होता है। आज का बच्चा ही कल का नागरिक होगा, इसलिए वह बच्चों को संस्कार देकर और उसका चरित्र गढ़कर एक स्वच्छ चरित्रवान् राष्ट्र का निर्माण करती है।
(ग) शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में नारी ने अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देकर समाज को स्वस्थ और शिक्षित बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई है। अब नारी चहारदीवारी से मुक्त होकर विज्ञान, तकनीक, उद्योग, व्यवसाय, न्याय, अन्तरिक्ष, खेल, कृषि, अनुसन्धान और शिक्षा के क्षेत्र में अपनी सशक्त भूमिका निभा रही है तथा अपने ज्ञान से समाज को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है।
(घ) आर्थिक क्षेत्र में एक समय था, जब भारत की नारी कुप्रथाओं की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी। आज नारी और समाज की सोच में पर्याप्त परिवर्तन हुआ है। वर्तमान भौतिकवादी युग में अर्थ की महत्ता बढ़ गई है। ऐसे में नारी पुरुष के साथ कंधे–से–कंधा मिलाकर धनोपार्जन के लिए प्रयत्नशील है। अपने गरिमामयी प्रयासों से वह परिवार–समाज को समृद्ध करने के लिए कृतसंकल्प है।
(ङ) व्यावसायिक क्षेत्र में–आज नारी ने बैंकिंग, केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, कॉर्पोरेट जगत्, स्वयं सेवी संस्थाओं आदि सभी क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। नारी की धैर्यपूर्ण कार्य क्षमता, सहयोगियों के साथ मधुर व्यवहार, स्थायित्व की मानसिकता, सीखने की जिज्ञासा, संवेदनशीलता, कोमल अभिव्यक्ति, सकारात्मक सोच तथा विनम्रता आदि गुणों ने समाज में उसकी भूमिका को महत्त्वपूर्ण बना दिया है।
(च) प्रशासनिक क्षेत्र में आज नारी लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा तथा स्थानीय निकायों के नेतृत्व में भी अग्रणी है। वह समाज की अन्य स्त्रियों के हितों को लेकर भी पर्याप्त सजग है। महिला सशक्तीकरण उसकी इसी सजगता का परिणाम है। अपनी सजगता के माध्यम से नारी अन्य स्त्रियों के उतथान में भी उल्लेखनीय कार्य कर रही है।
समाज को नई दिशा देनेवाली नारियाँ–आज नारी कविवर मैथिलीशरण गुप्त की– “अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में है पानी।” वाली अवधारणा को गलत सिद्ध करती हुई समाज को नई दिशा देने में जुटी है। वह अबलापन की अवधारणओं को तिलांजलि देकर विकास के सोपान पर अग्रसर है।
आज आई०पी०एस० अधिकारी किरण बेदी, अन्तरिक्ष यात्री कल्पना चावला, भारतीय वायुसेना के सबसे बड़े जहाज आई०पी०एल० 76 को उड़ानेवाली देश की प्रथम महिला पायलट वीणा सहारण, गणतन्त्र दिवस सन् 2012 ई० के समारोह के अवसर पर दिल्ली के राजपथ पर आयोजित होनेवाली परेड में भारतीय वायुसेना का नेतृत्व करनेवाली प्रथम महिला अधिकारी स्नेहा, मिसाइल मैन ए०पी०जे० अब्दुल कलाम की विरासत को आगे बढ़ा रही अग्नि मिसाइल की प्रोजेक्ट डायरेक्टर के० सी० थॉमस, भारत की टेरिटोरियल आर्मी की पहली महिला सापर शक्ति तिग्गा आदि अनेक नारियाँ समाज को नई दिशा प्रदान कर रही हैं, शिक्षा की अलख जगा रही हैं और कुप्रथाओं का उन्मूलन कर रही हैं। नारी के अबला होने की धारणा को बदलकर अपने लिए गरिमामयी मंच तैयार करके, भावी पीढ़ी के लिए सकारात्मक सोच उत्पन्न कर रही हैं।
उपसंहार–
इतिहास से लेकर वर्तमान तक यदि देखा जाए तो समाज को सुदृढ़ बनाने में नारी की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। वह परिवार को चलानेवाली कुशल गृहिणी, गृहलक्ष्मी और अन्नपूर्णा है। पति की छाया बनकर निरन्तर उसका साथ निभाने वाली पवित्र गंगा की धारा–सी निर्मल, सुख–दुःख में सहभागिनी होने के साथ–साथ वह आर्थिक विकास में भी अपने दायित्व का भली–भाँति निर्वाह कर रही है।
सामाजिक रीति–नीति भी नारी के व्यक्तित्व में एक धरोहर के रूप में संचित हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अपनी गौरवपूर्ण परम्पराओं को हस्तान्तरित करने का महान् उत्तरदायित्व भी उसके पास है। अनेक विद्वानों और समाजशास्त्रियों का मत है कि यदि नारी अपनी सन्तान के प्रशिक्षण में विश्वबन्धुत्व, भाईचारे और समानता को दृष्टिगत रखे तो भावी पीढ़ियों में एकता को बनाए रखा जा सकता है।
नैसर्गिक रूप से स्त्री–पुरुष एक–दूसरे के पूरक हैं। जिस आधुनिक लोकतान्त्रिक समाज में पुरुष अपने व्यक्तित्व की नई ऊँचाइयाँ छू रहा है, उसके निर्माण में नारी की भूमिका सर्वोपरि है।