Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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योगाभ्यास का अनाथ किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन



पूर्णेन्द्र चन्द्राकर *, डॉ. केवल राम चक्रधारी **

*शोधार्थी, योग विभाग, श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी रायपुर, छत्तीसगढ़ 

** सहायक आचार्य, योग विभाग, श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी रायपुर, छत्तीसगढ़

सारांश-

पृष्ठभूमि- संसार में प्रत्येक बच्चा अपने माता-पिता के प्रेम व स्नेह का अधिकारी होता हैपरन्तु बहुत से बच्चे इस प्रेम-स्नेह व अपनेपन को प्राप्त नहीं कर पाते हैंऐसा इसलिए है कि या तो वे माता-पिता से बिछुड़ गए हैंमाता-पिता की मृत्यु हो गई हो या माता-पिता द्वारा परित्याग कर दिया गया हो। जिसने अपने एक या दोनों माता-पिता को मृत्यु से खो दिया हो। अनाथ शब्द ऐसे बच्चों के लिए उपयोग किया जाता है और ऐसे बच्चों को माता-पिता से दूर हो जाने के कारण मानसिक स्वास्थ्य सबंधित  अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैA

उद्देश्य- प्रस्तुत शोध अध्ययन का उद्देश्य अनाथ किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर योगाभ्यासों के पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना हैA

शोध प्रविधि- प्रस्तुत शोध अध्ययन में उद्देश्यात्मक प्रतिचयन विधि का प्रयोग कर भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के देख-रेख संस्थान से 12 से 17 वर्ष की आयु सीमा के कुल 100 अनाथ बच्चों को प्रतिदर्श रूप में शामिल किया गयाA जिन्हें यादृच्छिक प्रतिचयन विधि द्वारा दो समूहों नियंत्रित समूह (n=50 ) तथा प्रयोगात्मक समूह (n=50) में बांटा गयाA तत्पश्चात् दोनों समूहों को अरुण कुमार सिंह और अल्पना सेन गुप्ता द्वारा सन 2000 में निर्मित मानसिक स्वास्थ्य बैटरी भरवाया गयाप्रयोगात्मक समूह को 3 माह तक सप्ताह में 6 दिन, प्रतिदिन 60 मिनट चयनित योगाभ्यासों (आसन, प्राणायाम, योगनिद्रा, ॐ एवं गायत्री मंत्र का उच्चारण) का अभ्यास कराया गया तथा नियंत्रित समूह को केवल दैनिक दिनचर्या का पालन करने के लिए कहा गयाA 3 माह की अवधि पूर्ण होने के पश्चात् दोनों समूहों को पुनः मानसिक स्वास्थ्य बैटरी भरवाई गईA तत्पश्चात् प्राप्त आंकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गयाA

परिणाम- प्राप्त आंकड़ों के सांख्यिकीय विश्लेषण से देखा गया कि p<20.23 है, अर्थात् परिणाम 0.01 के सार्थकता स्तर पर सार्थक है A

निष्कर्ष- परिणामों के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 12 से 17  वर्ष की आयु सीमा के किशोर अनाथों को तीन माह, सप्ताह में 6 दिन, प्रतिदिन 60 मिनट तक ऊँ और गायत्री मंत्र का उच्चारण, आसन, प्राणायाम तथा योगनिद्रा का अभ्यास कराया जाए तो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता हैA

कूट शब्द- अनाथ, किशोर, मानसिक स्वास्थ्य, योगA

 

 

प्रस्तावना (Introduction)

माता-पिता बच्चे के प्राथमिक देखभाल करने वाले होते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हजारों बच्चों को माता-पिता के बिना अपना जीवन व्यतीत करना पड़ता है। माता-पिता बाद में या तो मर जाते हैं या अपने बच्चों को पालने में असमर्थ होते हैंसमाज के ऐसे वर्ग को अनाथ कहा जाता है।[1]

एशिया महाद्वीप में समग्र रूप से कुल अनाथ जनसंख्या 5,72,20,000 हैं, जो कुल बाल जनसंख्या का 5.8% है। भारत दुनिया के 19% बच्चों का घर है। देश में हर साल लगभग 26 मिलियन बच्चे पैदा होते हैं और देश की एक तिहाई से अधिक आबादी 18 वर्ष से कम हैजो भारत में कुल जनसंख्या का लगभग 440 मिलियन (40%) है। वर्ष 2010 में भारत में अनाथ बच्चों की कुल संख्या 2,32,46,000 होने का अनुमान हैजो कुल बाल जनसंख्या का 6.8% है।[2]अनाथ बच्चों का वर्ग सामाजिक रूप से संवेदनशील और सांस्कृतिक रूप से उत्तेजक प्रतीत होता है। कभी-कभी शारीरिक और मानसिक रूप से मनोसामाजिक जुड़ाव की कमी के कारण अनाथ बच्चे असामान्य प्रतीत होते हैंउनकी यह अवस्था भोजन और आश्रय के अलावा मनोसामाजिक देखभाल की भी मांग करता है। 

विभिन्न आपदाओं के कारण वे किशोर जो अनाथ हो जाते हैंउन पर हुए कई शोधों से यह स्पष्ट होता है कि आपदाकई बच्चों एवं किशोरों को दर्दनाक सामाजिक पहचान के साथ छोड़ देती हैजिन्हें भौतिक सहायता की तुलना में मनोवैज्ञानिक समर्थन की अधिक आवश्यकता होती है[3] मनोवैज्ञानिक देखभाल के लिए अनाथालय को अनाथ बच्चों के लिए आश्रय स्थान के रूप में देखा जा सकता है। अनाथालय एक आवासीय संस्थान,  संस्था या सामूहिक घरहैजो अनाथों और अपने जैविक परिवारों से बिछुड़े हुए बच्चों की देखभाल के लिए समर्पित होता है।

किसी बच्चे को अनाथालयों में रखने के निम्न कारण हो सकते हैं , जैसे - माता-पिता की मृत्यु हो गईजैविकपरिवार बच्चे के लिए अपमानजनक या असुरक्षात्मक थाजैविक घर में मादक द्रव्यों का सेवन या मानसिक बीमारीथी, जो बच्चे के लिए हानिकारक थी या माता-पिता काम पर जाने के लिए या बच्चे को लेने में असमर्थ या अनिच्छुक थे।

मानसिक स्वास्थ्य का मूल आधार मन होता है। मन का मूल्य शरीर कि तुलना में अधिक होता है।[4]

जिनके माता-पिता की मृत्यु हो गई है या देखभाल प्रदान करने में असमर्थ हैंउन बच्चों के समर्थन के लिएकानूनी जिम्मेदारी की भूमिका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भिन्न भिन्न हैं।[5] अनाथ बच्चों के लिए जितनी आवश्यकता संसाधनों की दिखाई पड़ती है उससे कहीं अधिक आवश्यकता उनके मनोबल को बढ़ाने की होती है। अनाथ किशोरों के व्यक्तित्व को बेहतर बनाने का सबल माध्यम हो सकता है योग। 

योग विज्ञान अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण के साथ मनुष्य की समग्र प्रकृति को लेकर चलता है । साथ ही मनुष्य के सामने जीवन का उच्चतम आदर्श प्रतिपादित करते हुए उसे श्रेष्ठतम जीवन मूल्यों से जोड़ता है तथा मन का गहनतम एवं सूक्ष्मतम स्तर पर उपचार करते हुए मानसिक स्वास्थ्य की समस्या का समग्र एवं स्थायी रूप से समाधान प्रस्तुत करता है।[6] बचपन और किशोरों के स्वास्थ्य विकास के लिए मानसिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण तत्व है।[7] [8]  अच्छे मानसिक स्वास्थ्य वाले किशोर अपनी क्षमताओं को पहचानने में सक्षम होते हैंजीवन में सामान्य तनावों को संभाल सकते हैं और समुदाय में योगदान करने में सक्षम होते हैं।[9]

योगाभ्यास एक आदर्श प्रक्रिया है जिसके माध्यम से अनाथ बच्चों के मानसिक समस्याओं को दूर किया जा सकता है।  बी. के. एस. आयंगर के  अनुसार बुद्धि, मन व भावनाओं को अनुशासित करना ही योग है।[10]  योग भारतीय तत्व चिंतन और आध्यात्मिक साधना में अनादी  काल से गौरवशाली विषय रहा है। अतीत के किसी अज्ञात कल से अब तक, संध्यावंदन से  लेकर समाधि तक, प्रवृत्तिमार्गियों से  निवृत्तिमर्गियों तक, आस्तिकों- नास्तिकों से लेकर विदेशियों तक इसकी व्यापकता, महत्ता और उपयोगिता के अकाट्य प्रमाण हैं । हम कह सकते हैं कि योग आज के उपभोक्तावादी संस्कृति की देन नहीं अपितु यह उतनी ही प्राचीन है, जितनी कि भारतीय संस्कृति । [11]

योग मानवीय जीवन को सहज और नैसर्गिक, प्राकृतिक वातावरण के अनुकूल संयोजित करने का शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रयोग है । कुछ शोधकर्ताओं ने अपने शोध परिणाम द्वारा उल्लेखित किया है जैसे- 

पुरोहितसत्यप्रकाश एवं प्रधानबलराम (2017) ने अपने शोध में 72 अनाथ बच्चों को उनके उम्र और लिंग के आधार पर दो समुहो में (योग समूह-40 और प्रतिक्षा सुची नियंत्रण समूह-32) बांटा। योग समूह को 3 माह तक सप्ताह में 4 दिन 90 मिनट योगाभ्यास कराया गया और प्रतिक्षा सुची नियंत्रण समूह को केवल दिनचर्या पालन के लिए निर्देशित किया। इनके शोध का परिणाम यह दर्शाता है कि योग के निरंतर अभ्यास से किशोर अनाथों के सीखने की क्षमताकक्षा के व्यवहारप्रतिकुल परिस्थितियों से निपटने की क्षमता और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।[12] इसी प्रकार कलवरके. ए. एवं अन्य साथियों (2015) ने अनाथालयों में रहने वाले 7 से 17 साल के 76 बच्चों पर योगासन श्वास सम्बंधी अभ्यास व ध्यान का 8 सप्ताह तक अभ्यास कराया परिणामस्वरूप देखा गया कि ये अभ्यास शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायक । आघात संबंधी लक्षणोंभावनात्मक और व्यवहार संबंधी कठिनाईयांे को कम करने तथा मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में सहायक है।[13]  

अतः अनाथ बालकों के समग्र विकास के लिए योग एक ऐसा साधन है, जिससे बच्चों के सम्पूर्ण (शारीरिक, मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक) स्वास्थ्य को भली भांति विकसित किया जा सकता है । साथ ही अनाथ बालकों में आत्म विश्वास की कमी को योगाभ्यासों के माध्यम से दूर कर उनके मनोबल को उन्नत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जा सकती है ।

अनुसंधान क्रियाविधि (Research Methodology)-

प्रस्तुत शोध में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर और महासमुन्द जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के देख-रेख संस्थान से 12 से 17 उम्र के कुल 100 अनाथ बच्चों को उद्देश्यात्मक प्रतिचयन (Purposive Sampling) विधि द्वारा शामिल किया गयाA जिन्हें यादृच्छिक प्रतिचयन विधि (Random Sampling) द्वारा दो समूहों नियंत्रित समूह (n=50) तथा प्रयोगात्मक समूह (n=50) में विभक्त किया गयाA

शोध परिकल्पना (Research Hypothesis)प्रस्तुतशोध में शोधकर्ता द्वारा दिशात्मक परिकल्पना (Directional Hypothesis) का प्रयोग किया गया है – “योगाभ्यास का अनाथ किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सार्थक प्रभाव पड़ता है।“

शोध अभिकल्प (Research Design)- प्रस्तुत शोध में पूर्व एवं पश्चात् नियंत्रित-प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प (Pre-Post Control Experimental Research) का प्रयोग किया गया हैA

समावेशित मापदंड (Inclusion Criteria)- प्रस्तुत शोध में केवल उन्हें ही शामिल किया गया-

·      जिनके माता-पिता दोनो नहीं हैं या कोई एक है,

·      जो बालक देख-रेख संस्थान में निवासरत हैं,

·      जिनकी उम्र 12 से 17 के बीच है, 

·      शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के हैं,

·      जो देखरेख संस्थान में कम से कम 6 माह से निवासरत हैं ।

 

निषेध मापदंड (Exclusion Criteria)- प्रस्तुत शोध में निम्न को सम्मिलित नहीं किया गया -

·      किसी भी प्रकार के शारीरिक या मानसिक रोग से ग्रसित अनाथ बालक,

·      अनपढ़ ,

·      जो पहले से योगाभ्यास कर रहे हों,

·      बालिकाएं।

 

यौगिक हस्तक्षेप (Yogic Intervention)- प्रस्तुत शोध में भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर और महासमुंद जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के देख-रेख संस्थान से 12 से 17  वर्ष की आयु सीमा के कुल 100 ऐसे अनाथ किशोरों को जो समावेशित और निषेध मापदंड का पालन करते थे, ऐसे अनाथ किशोरों को उद्देश्यात्मक प्रतिचयन (Purposive Sampling) विधि द्वारा प्रतिदर्श में शामिल किया गया और उन्हें  यादृच्छिक प्रतिचयन विधि (Random Sampling) द्वारा दो समूहों नियंत्रित समूह (n=50) तथा प्रयोगात्मक समूह (n=50) में विभक्त किया गयाA तत्पश्चात् दोनों समूहों को अरुण कुमार सिंह और अल्पना सेन गुप्ता द्वारा सन 2000 में निर्मित मानसिक स्वास्थ्य बैटरी भरवाया गयाप्रयोगात्मक समूह को 3 माह तक निम्न चयनित योगाभ्यासों-

योगाभ्यास तालिका -

क्रमांक

यौगिक अभ्यास

समय

1.

ऊँ और गायत्री मंत्र का उच्चारण

5 मिनट

2.

आसनः-

ताड़ासनतिर्यकताड़ासनकटिचक्रासनसूर्यनमस्कार,वृक्षासनभुजंगासनसर्वांगासन, धनुरासन मत्स्यासन

30 मिनट

 

3.

प्राणायामः- यौगिक श्वसननाड़ी शोधन प्राणायामभ्रामरी प्राणायाम और भस्त्रिका प्राणायाम

15 मिनट

4.

योगनिद्रा

10 मिनट

 

कुल समय-

60 मिनट

 

का अभ्यास सप्ताह में 6 दिन प्रतिदिन 60 मिनट अभ्यास कराया गया तथा नियंत्रित समूह को केवल दैनिक दिनचर्या का पालन करने के लिए कहा गयाA 3 माह की अवधि पूर्ण होने के पश्चात् दोनों समूहों को पुनः अरुण कुमार सिंह और अल्पना सेन गुप्ता द्वारा निर्मित मानसिक स्वास्थ्य बैटरी को भरवाया गयाA

तत्पश्चात पूर्व एवं पश्च परिक्षण से प्राप्त आकड़ों के सांख्यिकीय विश्लेषण से निम्न परिणाम प्राप्त हुए-

परिणाम तालिका एवं ग्राफ (Result Table and Graph) - 

 

 समूह 

(Group)

प्रतिदर्श संख्या (N)

मध्यमान  (M)

मानक विचलन (S.D.)

माध्य मानक त्रुटि (Std. Error Mean)

स्वातंत्र्य कोटि(df)

टी – मान (t-value)

सार्थकता स्तर (significant level)

मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)

नियंत्रित

50

67.98

6.179

0.874

98

20.292

0.01 (Significant)

प्रयोगात्मक

50

96.84

7.934

1.122

यह परिणाम तालिका दर्शाती है कि p < 20.292 है, जो कि 0.01 के सार्थकता स्तर पर परिणाम सार्थक है A

ekufld LokLF; (Mental Health)

 

 

परिणाम (तालिका और ग्राफ) से पता चलता है कि दिशात्मक परिकल्पना “योगाभ्यास का अनाथ किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर सार्थक प्रभाव पड़ता है“ स्वीकार की जाती है। इस प्रकार चयनित योगाभ्यासों के अभ्यास के परिणामस्वरूप नियंत्रित समूह की तुलना में प्रायोगिक समूह के किशोरों  के मानसिक स्वास्थ्य के स्तर में अभिवृद्धि हुईA

परिणामों की व्याख्या एवं विवेचना (Interpretation and Discussion of the Result)

प्रस्तुत शोध का उद्देश्य योगाभ्यास का अनाथ किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना थाA आंकड़ों के संग्रहण के लिए अरुण कुमार सिंह और अल्पना सेन गुप्ता द्वारा निर्मित मानसिक स्वास्थ्य बैटरी का प्रयोग किया गया, प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर परिणाम यह प्रदर्शित करता है कि तीन महीने के यौगिक हस्तक्षेप के पश्चात् नियंत्रित समूह का मध्यमान (Mean) 67.98, मानक विचलन (SD) 6.179 और प्रयोगात्मक समूह का मध्यमान (Mean) 96.84 तथा मानक विचलन (SD) 7.934 प्राप्त हुआA जहाँ नियंत्रित समूह का मध्यमानप्रयोगात्मक समूह के मध्यमान से कम है साथ ही प्राप्त टी वैल्यू 20.292, p value से बड़ा है अतः प्रस्तुत शोध में प्रयुक्त दिशात्मक परिकल्पना स्वीकार होती है और 0.01 स्तर पर सार्थक सिद्ध होती हैA परिणाम से स्पष्ट होता है कि पारंपरिक तरीके से ओम जप का अभ्यास मन को शांत करने, याददाश्त बढ़ाने में एक शक्तिशाली साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसे हमें हमारे दैनिक जीवन शैली में जरूर शामिल करना चाहिए।[14]

नाड़ीशोधन प्राणायाम और ओम जप छात्रों की याददाश्त पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए एक महत्वपूर्ण अभ्यास है।[15]  योग निद्रा पर किए गए अध्ययनों से साबित हुआ है कि योग निद्रा प्रभावी रूप से तनाव और चिंता को कम करती है।[16] ईईजी अध्ययनों के द्वारा यह देखा गया कि योग निद्रा के अभ्यास के दौरान बीटा तरंग गतिविधि में प्रारंभिक वृद्धि होती हैजो अभ्यासकर्ताओं के मन को शांत स्थिति की ओर प्रेरित करने का संकेत देती हैं।[17]

शर्मा एवं साथियों द्वारा किए गए शोध के परिणाम यह बताते है कि योग अनाथ बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए एक व्यवहार्य और स्वीकार्य गतिविधि हैजो अनाथ बच्चों के पुनर्वास में प्रभावी भूमिका निभाती है।[18] हार्ने एवं साथी (2019) ने अपने शोध के परिणाम से यह निष्कर्ष निकाला कि  धीमी गति से सांस लेने से कार्डियोवागल केंद्रों पर प्रभाव पड़ता है।[19] अनाथ किशोरों के अकेलेपन को कम करने में योग कार्यक्रम उपयोगी अभ्यास है।[20]

निष्कर्ष (Conclusion)

परिणामों के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि 12 से 17  वर्ष की आयु सीमा के किशोर अनाथों को तीन माह तक सप्ताह में 6 दिन, प्रतिदिन 60 मिनट ऊँ और गायत्री मंत्र का उच्चारण, आसन (ताड़ासनतिर्यकताड़ासनकटिचक्रासनसूर्यनमस्कार,वृक्षासनभुजंगासनसर्वांगासन, धनुरासन मत्स्यासन), प्राणायाम (यौगिक श्वसननाड़ी शोधन प्राणायामभ्रामरी प्राणायाम और भस्त्रिका प्राणायाम) तथा  योगनिद्रा का अभ्यास कराया जाए तो अनाथ किशोरों के मानसिक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और उनके मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि होती हैA

सन्दर्भ सूची (References)-



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[5]Orphanage. (2021Wikipedia, the free encyclopedia.mht. Available from: http://www.en.wikipedia.org/wiki/Orphanage. [Last cited on 2020 Feb. 12].

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[16] Pandi-Perumal, S. R., Spence, D. W., Srivastava, N., Kanchibhotla, D., Kumar, K., Sharma, G. S., ... & Batmanabane, G. (2022). The origin and clinical relevance of yoga nidra. Sleep and vigilance6(1), 61-84.

 

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[20] Purohit, S. P., Pradhan, B., & Nagendra, H. R. (2016). Yoga as a preventive therapy for loneliness in orphan adolescents. Indian Journal of Health & Wellbeing7(1).