By P. Dishu Gangwar,
जिन्दगी है उलझनों का, एक कुशादा, कुछ नही है
मैं से हम तक का सफर है, हम से ज्यादा कुछ नहीं है ।
दृढ़ अगर संकल्प है फिर , पथ की बाधा कुछ नही है
पड़ेंगे बस घेर काले, और ज्यादा कुछ नहीं है
मंजिलों के जो मुसाफिर खो गये हैं शौक में
उनको भी अफसोस हैं, थोड़ा सा,ज्यादा कुछ नही
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शिला से फौलाद कंधे, वक्त के ढाले हुए हैं
धूल के कण मात्र, नभ की आरज़ू पाले हुए हैं,
कितने ह्रदयों में सरलता, विनय, प्रज्ञा, पुण्यता,
मोतियों की नीलिमा, दिव, उदाधि संभाले हुए हैं ।
पेचीदा है जिन्दगी, और इससे, सादा कुछ नहीं है।
राब्ते में है जलधि तो, बूंद की क्या अहमियत है
चंद लम्हों सी यहाँ , दोनों जहाँ की सल्तनत है
एक स्वर में कितने सजदे, चीखते हैं आज भी
खुदा जब है मेहवाँ ,तो फिर प्यादा कुछ नहीं है ।
कोई यादा ,कोई लश्कर, कोई तूफान बन जाना
चुना है कब यहाँ किसने , कोई शैतान बन जाना
फिज़ा के स्याह साथी, वक्त की उस जी हुजूरी से
कई बेहतर है कोई उम्दा, इंसान बन जाना.
मै से हम तक ही ना पहुँचा, कश्मकश में काफिला
फिर संग जीने और मरने का वो वादा, कुछ नही है।
नायाब जिन्दगी है ,फ़कत रद्दोबदल नही है,
ये रब की कारसाजी है ,कल थी , तो कल नही है ।
तन्हा रातों में खफा दी, जीत की जद्दोजहद,
मुश्किलों से हार जाना, मुश्किलों का हल नहीं है ।
है खुद ही से जंग, जीने का इरादा कुछ नहीं है ।
जिन्दगी है उलझनों का, एक कुशादा, कुछ नही है
मैं से हम तक का सफर है, हम से ज्यादा कुछ नहीं है ।
Author: P. Dishu Gangwar
Research Scholar , Department of English
Govt. P. G. College Bisalpur (Pilibhit) UP
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