मंजिलें तलाश कर, स्वयं विश्वास पर
इतिहास बनते हैं यहां, जय पे या फिर लाश पर
आंधी हवा सहते हुए, सूक्ष्म बीज पलता है
बाधाओं से लड़ते हुए, सूक्ष्म बीज पलता है
नज़रें गड़ा जैसे गड़ी, वृक्ष की अकाश पर
इतिहास बनते हैं यहां, जय पे या फिर लाश पर
मंजिलें तलाश कर, स्वयं विश्वास पर
डॉ. एस कश्मीरी