Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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अपने ना जाने कब क्यों रूठ जाते हैं Sayari

 अपने ना जाने कब क्यों रूठ जाते हैं  

देखे हुए सपने क्यों टूट जाते हैं  

दिल में है दर्द इतना कि बता नहीं सकते  

ग़म है पर हम तो रहते हैं हंसते  

आँखों में ही आंसू सब सूख जाते हैं  

अपने ना...  

दुनिया में है महफ़िल पर दिल में है तन्हाई  

हम पी रहे ग़म, उनके घर शहनाई  

रेत पे लिखी कहानी तो यूँ ही मिट जाते है  

अपने ना...  

दिखे हैं वही, जाएँ तो फिर हम जाएँ किस जगह  

भुलाए न भूले, चाहते हैं क्यों किस वजह  

सपनों के शहर में दीवाने क्यों लुट जाते हैं  

अपने ना...  

शशिकांत निशांत शर्मा 'साहिल'