रविदास, जिन्हें रैदास या रोहिदास के नाम से भी जाना जाता है, 15वीं शताब्दी के एक भारतीय संत, कवि और सामाजिक सुधारक थे। उनका जन्म 1377 ईस्वी में वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था।
जीवन और पृष्ठभूमि
रविदास का जन्म एक चमार परिवार में हुआ था, जो भारतीय जाति प्रणाली में अछूत माना जाता था। इसके बावजूद, रविदास के माता-पिता ने उनकी आध्यात्मिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया। उन्हें उनके गुरु, रामानंद, एक प्रसिद्ध वैष्णव संत ने आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान किया।
आध्यात्मिक शिक्षाएं और दर्शन
रविदास की शिक्षाएं इस प्रकार हैं:
1. भक्ति: ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण।
2. समानता: जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं।
3. आत्म-ज्ञान: अपनी सच्ची प्रकृति को समझना।
4. वैराग्य: दुनियावी मोह से दूर रहना।
उनका दर्शन भक्ति आंदोलन पर आधारित था, जिसका उद्देश्य विभिन्न जातियों और समुदायों के बीच की खाई को पाटना था।
साहित्यिक योगदान
रविदास ने 200 से अधिक कविताएं लिखीं, जिनमें से अधिकांश हिंदी और अवधी भाषाओं में हैं। उनकी रचनाएं सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं। कुछ प्रसिद्ध रचनाएं हैं:
1. बनजारा: आत्म-ज्ञान के महत्व पर एक कविता।
2. मिरातुल मसعود: भक्ति और समानता पर एक आध्यात्मिक ट्रीटिस।
सामाजिक सुधार
रविदास ने सामाजिक नियमों को चुनौती दी और समानता की वकालत की:
1. जाति प्रणाली का उन्मूलन: जाति प्रणाली की संरचना को खत्म करना।
2. महिला सशक्तिकरण: महिलाओं की शिक्षा और समानता की वकालत।
3. अस्पृश्यता का उन्मूलन: सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ लड़ाई।
प्रभाव और विरासत
रविदास की शिक्षाएं और विरासत ने प्रेरित किया है:
1. गुरु नानक: सिख धर्म के संस्थापक, जिन्होंने रविदास को आध्यात्मिक मार्गदर्शक के रूप में माना।
2. भक्ति आंदोलन: रविदास के विचारों ने आंदोलन की समानता और भक्ति पर जोर देने में योगदान दिया।
3. सामाजिक सुधार आंदोलन: उनके विचार आज भी सामाजिक सुधारकों को प्रेरित करते हैं।
रविदास जयंती
रविदास जयंती माघ पूर्णिमा (फरवरी) पर मनाई जाती है, जो उनके जन्मदिन का प्रतीक है।