Sahitya Samhita

Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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क्षेत्रीय भाषाओं का प्रचार Regional Languages

 संस्कृति मंत्रालय भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के रक्षण, संरक्षण और प्रचार के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें क्षेत्रीय भाषाएँ, पारंपरिक कला रूप और विलुप्त होने के कगार पर प्रदर्शन कलाएँ शामिल हैं। अपने स्वायत्त निकायों और क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों (जेडसीसी) के माध्यम से, मंत्रालय द्वारा कई लक्षित पहल की जाती रही हैं।

साहित्य अकादमी (एसए) 24 मान्यता प्राप्त भाषाओं और विभिन्न गैर-मान्यता प्राप्त और आदिवासी भाषा-साहित्य को बढ़ावा देने के लिए भाषा सम्मेलनों का आयोजन करती है। गैर-मान्यता प्राप्त भाषाओं में उनके योगदान के लिए विद्वानों को भाषा सम्मान प्रदान करती है, जिसमें अनेक भाषाएँ शामिल हैं। जैसे- हरियाणवीकोशाली-संबलपुरीपाइटमगहीतुलु, कुरुखलद्दाखीहल्बीसौराष्ट्रकुमाउनीभीलीवारलीबंजारा/लम्बडीखासीमिसिंगकोडवाचकमाराजबंशीअवधीबुंदेलीगढ़वालीकच्छीहिमाचलआओकार्बीअंगामीगोंडीहोछत्तीसगढ़ीगोजरीभोजपुरीअहिरानी​​लेप्चामुंडारीगारोभीलीकुईखासीमिज़ोपहाड़ी और कोकबोरोक।

संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) और ललित कला अकादमी (एलकेए) क्रमशः कार्यशालाओंप्रदर्शनियों और निवासों का आयोजन करती हैं। क्षेत्रीय कला तथा प्रतिभा प्रदर्शन के लिए परफॉर्मिंग आर्ट्स संग्रहालय और पीएआरआई परियोजना जैसे मंच बनाकर लुप्तप्राय प्रदर्शन कला और दृश्य कला को संरक्षित करने की भी पहल करती हैं। कला दीक्षाकला धरोहरप्रदर्शन कला संग्रहालयकला प्रवाह (मंदिर महोत्सव श्रृंखला)ज्योतिर्गमयकठपुतली के लिए शिविरडोकरा कास्टिंगमुखौटा बनानारंगोली कार्यशालाजनजातीय कला सम्मेलन जैसी कई अन्य पहल इन स्वायत्त निकायों द्वारा देश भर में विलुप्त हो रही और दुर्लभ प्रदर्शन कलाओं का संरक्षण करने का प्रयास की गई हैं।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) फिल्मोंग्रंथोंडिजिटल अभिलेखागार और कार्यशालाओं के माध्यम से लुप्तप्राय भाषाओं और कला रूपों के दस्तावेजीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन भारतीय ज्ञान प्रणालियों (आईकेएस) की विशाल क्षमता का दोहन करने और दुर्लभ पांडुलिपियों को विद्वानोंशोधकर्ताओं और आम जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए पांडुलिपियों के संरक्षण का कार्य करता है।

क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र (जेडसीसी) गुरु-शिष्य परंपरा जैसी योजनाओं के माध्यम से दुर्लभ और लुप्त हो रहे कला रूपों को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिसमें प्रख्यात गुरुओं के तहत शिष्यों को प्रशिक्षित करते हैं और युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए युवा प्रतिभाशाली कलाकार पुरस्कार देते हैं। अन्य उल्लेखनीय पहलों में थिएटर कायाकल्प शामिल हैजो स्टेज शो और कार्यशालाओं का समर्थन करता हैशिल्पग्रामजो ग्रामीण शिल्प को बढ़ावा देता है। यह मेलों तथा राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (एनसीईपी) का भी आयोजन करता हैजो अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देती है।

मंत्रालय की कार्य योजना में लुप्तप्राय कला रूपों और भाषाओं का निरंतर दस्तावेज़ीकरणअनुसंधान के लिए डिजिटल अभिलेखागार का विस्तार और गुरु-शिष्य परंपरा जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से अंतर-पीढ़ीगत प्रसारण सुनिश्चित करना शामिल है। भावी पीढ़ियों के लिए देश की सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से भारत की विविध विरासत के बारे में जागरूकता और सराहना बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी सहयोग और राज्य-स्तरीय भागीदारी के माध्यम से देश भर में सांस्कृतिक उत्सवोंप्रदर्शनियों और विनिमय कार्यक्रमों को आयोजित करने की परिकल्पना की गई है। भाषा सम्मान जैसे पुरस्कारों से कलाकारों और विद्वानों को सम्मानित करना और ऑक्टेव जैसी पहल के माध्यम से उत्तर-पूर्व की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना मंत्रालय की रणनीति के अभिन्न अंग हैं।