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Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695

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होली Holi Festival in India

 होली भारत का एक प्रमुख और लोकप्रिय त्योहार है, जिसे रंगों का त्योहार भी कहा जाता है। यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसकी धूमधाम पूरे भारत में देखने को मिलती है। होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, भाईचारे और सौहार्द्र का प्रतीक भी है। यह पर्व सभी धर्मों और वर्गों के लोगों को एक साथ जोड़ता है और समाज में खुशहाली और उल्लास का संचार करता है।


होली का धार्मिक और पौराणिक महत्व होली का धार्मिक और पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसके पीछे कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख कथा हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद और होलिका की है।

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, हिरण्यकश्यप एक अहंकारी राजा था, जिसने स्वयं को भगवान घोषित कर दिया था और चाहता था कि उसकी प्रजा केवल उसकी पूजा करे। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। यह बात हिरण्यकश्यप को स्वीकार नहीं थी, इसलिए उसने प्रह्लाद को मारने के कई प्रयास किए। अंततः उसने अपनी बहन होलिका, जिसे अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था, की मदद ली। होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन प्रभु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

इसके अलावा, होली का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और राधा से भी जोड़ा जाता है। वृंदावन और मथुरा में इस पर्व को अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीकृष्ण ने गोकुल में अपने सखाओं और गोपियों के साथ रंगों की होली खेली थी, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।

होली मनाने की परंपराएं और रीति-रिवाज होली का उत्सव दो दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है, जिसे छोटी होली या होलीका दहन भी कहते हैं। इस दिन लोग लकड़ी, उपले और अन्य सामग्रियों से अग्नि जलाते हैं और बुराई का नाश करने तथा जीवन में सुख-शांति की प्रार्थना करते हैं।

दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है, जिसे 'धुलेंडी' कहा जाता है। इस दिन सभी लोग रंग, गुलाल और पानी के रंगों से एक-दूसरे को रंगते हैं और बधाइयाँ देते हैं। ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाच-गाना होता है और मिठाइयाँ बाँटी जाती हैं। विशेष रूप से गुजिया, मालपुआ, ठंडाई और अन्य पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं।

भारत के विभिन्न भागों में होली को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है:

  • बरसाने की लठमार होली: उत्तर प्रदेश के बरसाना में महिलाओं द्वारा पुरुषों को लाठी से मारकर होली खेली जाती है।

  • मथुरा-वृंदावन की होली: यहाँ पर एक सप्ताह तक फूलों और गुलाल से होली खेली जाती है।

  • शांतिनिकेतन की होली: पश्चिम बंगाल में इसे ‘बसंत उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है।

  • राजस्थान की शाही होली: यहाँ राजघराने भी होली के जश्न में शामिल होते हैं।

  • पंजाब में होला मोहल्ला: सिख समुदाय इसे युद्ध कौशल और भक्ति के रूप में मनाता है।

होली के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव होली सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। यह पर्व लोगों के बीच आपसी भाईचारे और प्रेम को बढ़ाता है। इस दिन पुराने गिले-शिकवे भुलाकर सभी गले मिलते हैं और खुशियाँ बाँटते हैं। यह त्योहार जात-पात और ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाकर समानता की भावना को बढ़ावा देता है।

इसके अलावा, होली संगीत, नृत्य और कला के क्षेत्र में भी अपनी छाप छोड़ता है। होली के अवसर पर विभिन्न लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें ‘फाग’, ‘चैती’ और ‘होलिया’ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। बॉलीवुड फिल्मों में भी होली से जुड़ी कई यादगार प्रस्तुतियाँ देखने को मिलती हैं।

निष्कर्ष होली भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और हर्षोल्लास से भरा त्योहार है। यह हमें यह संदेश देता है कि सत्य और अच्छाई की हमेशा जीत होती है और हमें प्रेम और भाईचारे के साथ रहना चाहिए। इस दिन हर कोई आपसी मनमुटाव को भूलकर एक-दूसरे के रंग में रंग जाता है और आनंदपूर्वक जीवन जीने का संदेश देता है।

होली न केवल रंगों का त्योहार है, बल्कि यह प्रेम, उल्लास और एकता का भी प्रतीक है। इस पर्व को स्नेह और सौहार्द्र से मनाना चाहिए और इसे आनंदमय और सुरक्षित बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करना चाहिए।

इस प्रकार, होली न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि यह सामाजिक सद्भाव और मानवीय मूल्यों को भी उजागर करता है। आइए, इस होली को प्रेम, सौहार्द्र और भाईचारे के रंगों में सराबोर करें।