Sahitya Samhita Journal ISSN 2454-2695
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में। पीयूष स्रोत–सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में। कविवर जयशंकरप्रसाद की ये पंक्तियाँ स्वस्थ समाज…