जब ख्वाबों की माला पिरोई अपने लिए तो लोगों का हस्तक्षेप कैसा। जब स्वप्न संजोए अपनों के लिए फिर जमाने का डर कैसा। जब चाह रखी आसमान छूने की तो ऊंचाइय…
Read moreसारी आशाओं को खोता चला जा रहा हूं खुद में ही कहीं गुम होता चला जा रहा हूं जीवन की इस कश्मकश में मैं सब कुछ खोता चला जा रहा हूं। लौट आऊं फिर अपने…
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