जब ख्वाबों की माला पिरोई अपने लिए तो लोगों का हस्तक्षेप कैसा। जब स्वप्न संजोए अपनों के लिए फिर जमाने का डर कैसा। जब चाह रखी आसमान छूने की तो ऊंचाइय…
Read moreसारी आशाओं को खोता चला जा रहा हूं खुद में ही कहीं गुम होता चला जा रहा हूं जीवन की इस कश्मकश में मैं सब कुछ खोता चला जा रहा हूं। लौट आऊं फिर अपने…
Read moreओनम की आए खुशियाँ बहार, खेतों में बसे सजीव रंग न्यार। पुकारती हैं वंशजों की यह आवाज, आओ, मिलकर मनाएं ओनम की राज। पुलकित हृदय सपनों से सजा, खिलते फूल…
Read moreभारत माँ की विशाल धरती, गर्व से भरी है हर घटी। वीरों का देश, बहुमुखी धरा, संस्कृति का निधान, अद्भुत विचारा। हिमालय की शीतल छांव में, गंगा की महिमा …
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